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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वाविंश अध्ययन [278]
नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेण तहेव य।
खन्तीए मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य॥२६॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षमा और निर्लोभता के साथ बढ़ते रहो॥ २६ ॥
Continue progressing on the path of right knowledge-faith-conduct and ever enhancing forgiveness and non-covetousness. (26)
एवं ते रामकेसवा, दसारा य बहू जणा।
अरिट्ठणेमिं वन्दित्ता, अइगया बारगापुरिं॥२७॥ इस तरह बलराम, कृष्ण, दशार्ह तथा अन्य बहुत से व्यक्ति भगवान अरिष्टनेमि को वन्दन करके द्वारिकापुरी को वापस लौट गये॥ २७॥
Thus Balarama, Krishna, Dasharhas and many other persons returned to Dvaraķapuri after paying homage to Bhagavan Arishtanemi. (27)
सोऊण रायकन्ना, पव्वज्जं सा जिणस्स उ।
नीहासा य निराणन्दा, सोगेण उ समुत्थया॥२८॥ भगवान की प्रव्रज्या के विषय में सुनकर राजकन्या राजीमती का हँसना, प्रसन्नता, आनन्द-सब समाप्त हो गये। वह शोक की अधिकता से व्याप्त हो गई। उसे गहरा शोक हुआ॥ २८॥
Hearing the news of initiation of Arishtanemi, the laughter, gaiety and joy of princess Raajimati all vanished. She was overwhelmed with grief. She was in a deep anguish. (28)
राईमई विचिन्तेह, धिरत्थु मम जीवियं।
जा ऽहं तेण परिच्चत्ता, सेयं पव्वइउं मम॥२९॥ राजीमती ने विचार किया-मेरे जीवन को धिक्कार है। चूँकि मैं उनकी परित्यक्ता हूँ, इसलिए मेरा प्रवजित होना ही उचित (श्रेष्ठ) है॥ २९ ॥
Raajimati thought-Shame upon my life that I have been forsaken by him; therefore it is better for me too to get initiated. (29)
अह सा भमरसन्निभे, कुच्च-फणग-पसाहिए।
सयमेव लुचई केसे, धिइमन्ता ववस्सिया॥३०॥ अतः धैर्यशालिनी और दृढ़ निश्चयी राजीमती ने कूँची और कंघी से सँवारे हुए भ्रमर के समान काले केशों का अपने हाथ से लोंच किया॥ ३०॥
Hence patient and determined Raajimati plucked her combed and brushed bumblebee-like black hairs with her own hands. (30)
वासुदेवो य णं भणइ, लुत्तकसं जिइन्दियं ।
संसारसागरं घोरं, तर कन्ने ! लहुं लहुं॥३१॥ केशलोंच की हुई व जितेन्द्रिय राजीमती से कृष्ण ने कहा-हे कन्ये! इस घोर संसार-सागर को शीघ्रातिशीघ्र पार करो॥ ३१ ॥