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an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकविंश अध्ययन [268]
सद्ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करने वाला महर्षि, अनुत्तर धर्मसंचय का आचरण करके, अनुत्तर ज्ञानधारक यशस्वी धर्मसंघ में उसी प्रकार प्रकाशमान होता है जैसे अन्तरिक्ष में सूर्य ॥ २३ ॥
The great ascetic endowed with unique wisdom through pursuit of right knowledge, and continued practice of the supreme religion, shines amidst the glorious religious organization as the sun scintillates in space. (23)
दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं, निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के। तरित्ता समुदं व महाभवोघं, समुद्दपाले अपुणगमं गए॥२४॥
–त्ति बेमि। समुद्रपाल मुनि पुण्य और पाप-दोनों का क्षय करके निश्चल (निरंगन) और सभी तरह से विप्रमुक्त होकर, संसार के विशाल प्रवाह को तैरकर मोक्ष (अपुणागम) में गये-मुक्त हो गये ॥२४॥
-ऐसा मैं कहता हूँ।
Destroying both merits and demerits, being steadfast (in restraint) and free from all fetters, ascetic Samudrapaal, swam the relentless flow of the ocean of worldly existence (cycles of rebirth) to attain liberation. (24)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण गाथा ८-वध्यजनोचितमण्डन-प्राचीनकाल में चोरी करने वाले को बहुत कठोर दण्ड दिया जाता था। जिसे वध (मृत्युदण्ड) का दण्ड दिया जाता उसके गले में लाल कणेर के फूलों की माला, शरीर पर लाल कपड़े पहनाये जाते थे और सारे नगर में घुमाते हुए उसके अपराध का उल्लेख करते हुए श्मशान की ओर ले जाया जाता था।
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IMPORTANT NOTES
Verse 8—Vadhyajanochit mandana-In ancient times thieves were given very harsh punishment. According to the prevailing tradition the thief sentenced to death was clad in red dress, with a garland of red Kaner (oleander) flowers round his neck and body smeared with red sandalwood paste. While leading him to the place of execution, the escorting guards took him all around the city making announcement of his crime.