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in सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
प्रथम अध्ययन [4]
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कण-कुण्डगं चइत्ताणं, विटुं भुंजइ सूयरे।
एवं सीलं चइत्ताणं, दुस्सीले रमई मिए॥५॥ जैसे चावल मिश्रित भूसी को छोड़कर सुअर विष्ठा खाता है, वैसे ही (मृग) पशु प्रवृत्ति वाला शिष्य शील (उत्तम आचार) छोड़कर निम्न कोटि के आचरण (दुःशील) में प्रवृत्त होता है॥५॥
As a pig rejects paddy mixed chaff and eats filth; in the same way a beastly natured disciple avoids uprightness (noble conduct) and embraces misdemeanor (ignoble conduct). (5)
सुणियाऽभावं साणस्स, सूयरस्स नरस्स य।'
विणए ठवेज्ज अप्पाणं, इच्छन्तो हियमप्पणो॥६॥ अपनी आत्मा का हित चाहने वाला साधु सड़े कानों वाली कुतिया और विष्ठा खाने वाले सूअर के समान अपनी हीन (तिरस्कृत) स्थिति को समझे और अपने आप को (अपनी आत्मा को) विनय धर्म में स्थापित करे॥६॥
An ascetic seeking spiritual uplift should understand his degraded condition in light of the aforesaid repudiation of a bitch with ulcerous ear lobes and a pig, and accordingly accept and follow the code of modesty. (6)
तम्हा विणयमेसेज्जा, सीलं पडिलभे जओ।
बुद्ध-पुत्त नियागट्ठी, न निक्कसिज्जई कण्हुई॥७॥ ___ शील (सदाचार) की प्राप्ति के लिये विनय का पालन करना चाहिये (क्योंकि) बुद्धिमान गुरु
के प्रिय पुत्र के समान प्रिय शिष्य (बुद्ध-पुत्र) को उसकी विनयशीलता के कारण कहीं से भी निकाला नहीं जाता। वह कहीं भी तिरस्कृत नहीं होता॥७॥
To attain noble conduct one must embrace modesty, because like the beloved son of a wise guru even his beloved disciple (son-like pupil) is never thrown out from anywhere due to his modesty. Nowhere is he insulted. (7)
निसन्ते सियाऽमुहरी, बुद्धाणं अन्तिए सया।
अट्ठजुत्ताणि सिक्खेज्जा, निरट्ठाणि उ वज्जए॥८॥ शिष्य गुरु-चरणों में सदा शांत भाव से रहे, अल्पभाषी बने, अर्थयुक्त (मोक्ष के उपाय रूप) वचनों को सीखे और निरर्थक वचनों (लोकोत्तर अर्थरहित)-पदों को छोड़ दे॥ ८॥
A disciple should always remain calm at the feet of his guru. He should talk less, learn meaningful text (leading to liberation) and reject meaningless phrases (without spiritual context). (8)
अणुसासिओ न कुप्पेज्जा, खंति सेवेज्ज पण्डिए।
खुड्डेहिं सह संसग्गिं, हासं कीडं च वज्जए॥९॥ (विवेकवान) शिष्य गुरु के कठोर अनुशासन (शिक्षा, ताड़न-तर्जन) से कुपित न हो, हृदय में क्षमा (क्षांति) धारण करे तथा क्षुद्र व्यक्तियों से सम्पर्क न रखे, उनके साथ हँसी-मजाक तथा किसी प्रकार की क्रीड़ा न करे॥९॥