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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
वह वणिक् श्रावक कुशलतापूर्वक चम्पानगरी में अपने घर आ गया। वह बालक (समुद्रपाल ) उसके घर में सुख से रहने लगा ॥ ५ ॥
एकविंश अध्ययन [ 264]
That merchant shravak safely reached his home in Champa city. That child grew comfortably in his house. (5)
बावत्तरिं कलाओ य, सिक्खए नीइकोविए । जोव्वणेण य संपन्ने, सुरूवे पियदंसणे ॥ ६॥
उस (समुद्रपाल) ने बहत्तर कलाओं की शिक्षा प्राप्त की तथा नीति-निपुण हो गया। युवा होने पर वह सबको सुरूप और प्रिय लगने लगा ॥ ६ ॥
He (Samudrapaal) learned all seventy two arts and became worldly wise. He turned out to be a handsome and attractive youth. (6)
तस्स रूववइं भज्जं, पिया आणेइ रूविणीं । पासाए कीलए रम्मे, देवो दोगुन्दओ जहा ॥ ७ ॥
उसके पिता (पालित व्यवसायी) ने रूपिणी नाम की एक सुन्दर कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया। अब वह (समुद्रपाल ) दोगुन्दक देवों के समान अपने सुन्दर प्रासाद (भवन) में पत्नी के साथ क्रीड़ा-मग्न हो गया ॥ ७ ॥
His father married him to a beautiful girl named Rupini. Now, like Dogundak gods (a class of divine beings that are exclusively devoted to earthly enjoyments), he got engrossed in enjoying his married life with his wife in his beautiful mansion. (7) अह अन्नया कयाई, पासायालोयणे ठिओ । वज्झमण्डणसोभाग, वज्झं पासइ वज्झगं ॥ ८ ॥
किसी समय वह अपने सुरम्य भवन के आलोकन ( गवाक्ष) में बैठा था। उसने वध्यं चिन्हों से युक्त एक पुरुष को नगरी से बाहर वध स्थान की ओर (राजसेवकों द्वारा) ले जाते हुए देखा ॥ ८ ॥
Once he was sitting in the balcony of his beautiful mansion. He saw a man dressed for execution being lead to the execution ground (by guards ). ( 8 )
तं पासिऊण संविग्गो, समुद्दपालो इणमब्बवी । अहोऽसुभाण कम्माणं, निज्जाणं पावगं इमं ॥ ९ ॥
उस पुरुष को देखकर संविग्न समुद्रपाल ने कहा - अहो ! यह अशुभ कर्मों का दुःखदायी फल है॥९॥
Agitated by this sight, Samudrapaal exclaimed-Oh! It is the dreadful consequence of evil deeds. (9)
संबुद्धो सो तहिं भगवं परं संवेगमागओ ।
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आपुच्छ ऽम्मापियरो, पव्वए अणगारियं ॥ १० ॥
इस प्रकार संविग्न हुआ वह (समुद्रपाल ) महात्मा ( भगवं ) सम्बुद्ध हो गया। माता-पिता से पूछकर उनकी अनुमति प्राप्त करके उसने श्रमणत्व (अणगारियं) ग्रहण कर लिया ॥ १० ॥