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[237] एकोनविंश अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
मैंने इस प्रकार अपने पूर्व-जन्मों में सदा भयकारक, दुःखित, कष्टित, पीड़ित और व्यथित होकर अत्यन्त दुःख वेदना का अनुभव किया है॥७२॥
Thus I have always experienced excruciating pain getting afraid, miserable, tormented, tortured and distressed in my past births. (72)
तिव्व-चण्ड-प्पगाढाओ, घोराओ अइदुस्सहा।
महब्भयाओ भीमाओ, नरएसु वेइया मए॥७३॥ मैंने नरकों में तीव्र, प्रचण्ड, प्रगाढ़ और घोर अत्यन्त दुःसह, महाभयंकर और भयभीत करने वाली वेदनाएँ भोगी हैं॥ ७३॥
In hells I have suffered sharp, intense, severe, excruciating, extremely intolerable, horrifying and dreadful agonies. (73)
.. जारिसा माणुसे लोए, ताया ! दीसन्ति वेयणा।
एत्तो अणन्तगुणिया, नरएसु दुक्खवेयणा॥७४॥ पिताजी ! इस मनुष्य लोक में जैसी वेदनाएँ दिखाई देती हैं, उससे अनन्तगुणी दुःखपूर्ण वेदनाएँकष्ट-पीड़ाएँ नरकों में होती हैं। ७४ ॥
Father! In hells there are infinitely more severe torments and tortures as compared to those experienced in this human world. (74)
सव्वभवेसु अस्साया, वेयणा वेइया मए।
निमेसन्तरमित्तं पि, जं साया नस्थि वेयणा॥७५॥ __ मैंने प्रायः सभी भवों-गतियों में असाता-दुःखरूप वेदना का ही अनुभव किया है। एक पल मात्र के लिए भी असाता-दुःख का अन्त नहीं आया। साता वेदना-सुख की अनुभूति नहीं हो सकी॥ ७५॥
I have experienced sorrows and sufferings in almost all the realms of my past existence. Even for a moment there was no relief from the miseries. I never had a chance to experience happiness. (75)
तं बिंत ऽम्मापियरो, छन्देणं पुत्त ! पव्वया।
नवरं पुण सामण्णे, दुक्खं निप्पडिकम्मया॥७६॥ (माता-पिता-) माता-पिता ने तब मृगापुत्र से कहा-तुम अपनी इच्छा से प्रव्रज्या लेना चाहो तो ग्रहण कर लो; किन्तु विशेष बात यह है कि यदि श्रमण-जीवन में किसी कारण शरीर में रोग उत्पन्न हो जाय तो उसकी निष्प्रतिकर्मता-चिकित्सा नहीं कराई जाती-यह एक बड़ा दुःख है॥ ७६ ॥
Then mother and father said to Mrigaputra-Son, if you want to get initiated of your own volition do that. But you should know that in ascetic life if for some reason the body is inflicted with some disease it is not allowed to avail any treatment. It is a very grave situation. (76)