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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
एकोनविंश अध्ययन [ 234]
अवसो लोहरहे जुत्तो, जलन्ते समिलाजुए।
चोइओ तोत्तजुत्तेहिं, रोज्झो वा जह पाडिओ॥५७॥ कील (समिला) युक्त जुए वाले, जलते हुये लोहे के रथ में जबरदस्ती जोता गया हूँ, चाबुक और रस्सियों से हाँका गया हूँ तथा रोझ के समान पीट-पीटकर जमीन-भूमि पर गिराया गया हूँ। ५७॥
I have been forcibly yoked to a nail-studded chariot of burning hot iron and then I have been driven on with whips and ropes, and I have been knocked down on earth like an antelope. (57)
हुयासणे जलन्तम्मि, चियासु महिसो विव।
दड्ढो पक्को य अवसो, पावकम्मेहि पाविओ॥५८॥ अपने ही पापों के कारण मैं जलती हुई चिताओं की अग्नि में भैंसे की तरह जलाया और पकाया गया हूँ॥ ५८॥
Due to my own sins, I have been burnt and roasted like a buffalo in blazing fire of pyres. (58)
बला संडासतुण्डेहिं, लोहतुण्डेहि पक्खिहिं।
विलुत्तो विलवन्तोऽहं, ढंक-गिद्धेहिऽणन्तसो॥५९॥ लोहे जैसे कठोर और मजबूत मुख तथा संडासी जैसी नुकीली चोंच वाले गीध और ढंक पक्षियों द्वारा रोता-बिलखता हुआ मैं अनंत बार नोंचा गया हूँ॥ ५९॥
I have been violently lacerated by vultures and Dhunk-birds with iron bills shaped like tongs infinite times, all the while screaming and wailing. (59)
तण्हाकिलन्तो धावन्तो, पत्तो वेयरणिं नदिं।
__ जलं पाहिं त्ति चिन्तन्तो, खुरधाराहिं विवाइओ॥६०॥ मैं प्यास से व्याकुल होकर, दौड़ता हुआ वैतरणी नदी के पास पहुँचा। जल पीने की सोच ही रहा था कि छुरे की धार जैसी तीक्ष्ण धारा ने मुझे चीर दिया॥ ६०॥
Suffering from agony of thirst, I ran to river Vaitarani. I was just thinking of drinking __water when the dagger-like sharp current of river cleaved me. (60)
उहाभितत्तो संपत्तो, असिपत्तं महावणं।
असिपत्तेहिं पडन्तेहिं, छिन्नपुव्वो अणेगसो॥६१॥ गर्मी से संतप्त होकर छाया के लिए मैं असिपत्र महावन में पहुँचा। लेकिन वृक्षों से गिरते हुये छुरे की धार के समान तीक्ष्ण पत्तों ने मुझे चीर दिया॥ ६१॥ ____Distressed by extreme heat Ientered the Asipatra (dagger shaped leaves) great forest. But the dagger-like sharp leaves dropping from trees lacerated me. (61)
मुग्गरेहिं मुसंढीहिं, सूलेहिं मुसलेहि य। गयासं भग्गगत्तेहिं, पत्तं दुक्खं अणन्तसो॥६२॥