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________________ xteshseasesharas seaseshasistantanasenianistalented EX | उत्तराध्ययन : लोकोत्तर आगम । प्रस्तुत आगम का नाम उत्तराध्ययनसूत्र है। उत्तर शब्द के कई अर्थ हैं-श्रेष्ठ (best), उत्तम (utmost), अन्तिम (last) आदि। ऐसा विश्रुत है कि भगवान महावीर अपृष्ट वागरणा के रूप में उत्तराध्ययन के 3६ अध्ययनों का वर्णन पूरा करके 3७वें 'प्रधान' नामक अध्ययन का प्रवचन करते-करते शैलेशी अवस्था को प्राप्त होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गये। इसलिये यह आगम भगवान महावीर की अन्तिम वाणी के रूप में मान्य है। . इस आगम की श्रेष्ठता और उत्तमता इसमें निहित अनेक विशेषताओं पर आधारित है। यह आगम श्रमण-धर्म का संपूर्ण और विशद् विश्लेषण प्रस्तुत करता उत्तराध्ययनसूत्र की सम्पूर्णता इस तथ्य में निहित है कि जैन धर्मानुमोदित तत्त्व-विज्ञान, सम्यक्-ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तप का वर्णन, विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन की प्रेरक घटनाएँ, श्रमणाचार के नियम, गुरु और शिष्य के कर्तव्य आदि सभी कुछ इसमें गुम्फित हैं। इसे जैनधर्म के विशाल वाङ्मय का संक्षिप्त सार संग्रह (compendium) के पद पर प्रतिष्ठित किया जा सकता है। ___ प्रस्तुत आगम की इन्हीं तथा अन्य ऐसी ही विशिष्ठताओं के कारण यह जैन - जगत् में सर्वाधिक लोकप्रिय, पठनीय तथा श्रद्धा का केन्द्र रहा है। इसके 3६ अध्ययन हैं। सभी अध्ययन पृथक्-पृथक् होते हुये भी, एक ही माला के ऐसे मनके हैं जो अपनी अलग-अलग आभा बिखेरते हुये, सम्पूर्ण हार को बहुरंगी विविध वर्णी प्रभा से प्रभास्वर करते हैं। सम्पूर्ण सूत्र को दिव्यता से ओत-प्रोत कर देते हैं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण सूत्र दिव्य तथा लोकोत्तर आगम के रूप में जन-जन का कंठहार बन गया है। (23)
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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