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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
वासमुपज्जज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे विभूसाणुवाई सिया ।
नौवाँ ब्रह्मचर्य समाधि - स्थान
सूत्र ११ - जो शरीर की विभूषा - शोभा नहीं करता, वह निर्ग्रन्थ है। (प्रश्न) ऐसा क्यों है ?
षोडश अध्ययन [ 192 ]
(उत्तर) आचार्य ने समाधान देते हुए कहा - जिसकी मनोवृत्ति विभूषा करने की होती है, वह अपने शरीर को सजाता है; फलस्वरूप स्त्रियाँ उसे चाहने लगती हैं। तब स्त्रियों द्वारा अभिलाषा किये जाने वाले ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा समुत्पन्न होती है अथवा ब्रह्मचर्य भंग हो जाता है या उन्माद हो जाता है अथवा वह दीर्घकालीन रोगों व आतंकों से ग्रसित हो जाता है, वह केवली प्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट हो जाता है।
इसलिये निर्ग्रन्थ विभूषानुपाती (विभूषा में आसक्त) न बने।
Ninth condition of perfect celibacy
Maxim 11- He who does not embellish his body, is knotless ascetic.
(Q.) Why is it so?
(Ans.) The preceptor explains - If a celibate ascetic has inclination to embellish his body and he does so, then women are attracted towards him; when a celibate ascetic is desired by women, doubt and disrespect for celibacy as well as desire of sexual indulgence germinate in his mind or his vow of celibacy is breached. Also he is inflicted by mental disorder, prolonged ailments and terror. Ultimately he falls from the religious path shown and established the omniscient (Kevali).
Therefore, an ascetic should not get obsessed with embellishments of his body. सूत्र १२-नो सद्द-रूव-रस- गन्ध - फासाणुवाई हवइ, से निग्गन्थे ।
तं कहमिति चे ?
आयरियाह–निग्गन्थस्स खलु सद्द-रूव-रस- गन्ध- फासाणुवाइस्स बम्भयारिस्स बम्भचेरे संकावा, खावा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालिय वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा ।
तम्हा खलु नो निग्गन्थे सद्द - रूव-रस- गन्ध - फासाणुवाई हविज्जा ।
दसमे बम्भचेरसमाहिठाणे हवइ ।
दसवाँ ब्रह्मचर्य समाधि - स्थान
सूत्र १२ - जो शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में आसक्ति नहीं रखता; वह निर्ग्रन्थ है । (प्रश्न) ऐसा क्यों है ?