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on सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
पञ्चदश अध्ययन [180]
(७) मकानों के आगे-पीछे के विस्तार आदि लक्षणों पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना वास्तु-विद्या है। (८) षड्ज, ऋषभ आदि सात स्वरों पर से शुभाशुभ का ज्ञान करना स्वर-विद्या है। उक्त विद्याओं के प्रयोग से भिक्षा प्राप्त करना, भिक्षा का "उत्पादना" नामक एक दोष है।
गाथा ८-परम्परानुसार “धूमनेत्त" एक संयुक्त शब्द माना गया है। जबकि टीकाकार धूम और नेत्र दो भिन्न शब्द मानते हैं। उनके मतानुसार धूम का अर्थ है-मन-शिला आदि धूप से शरीर को धूपित करना,
और नेत्र का अर्थ है-नेत्र संस्कारक अंजन आदि से नेत्र 'आंजना'। मुनि श्री नथमल जी द्वारा संपादित दशवैकालिक और उत्तराध्ययन में धूमनेत्र का 'धुएँ की नली से धुंआ लेना'-अर्थ किया है।
स्नान से यहाँ वह स्नान-विद्या अभिप्रेत है, जिसमें पुत्र-प्राप्ति के लिये मन्त्र एवं औषधि से संस्कारित जल से स्नान कराया जाता है-बृहवृत्ति। ___ गाथा ९-आवश्यक नियुक्ति (गा. १९८) के अनुसार भगवान ऋषभदेव ने चार वर्ग स्थापित किये थे-(१) उग्र-आरक्षक, (२) भोग-गुरुस्थानीय, (३) राजन्य-समवयस्क या मित्र स्थानीय, (४) क्षत्रिय-अन्य शेष लोग।
'भोगिक' का अर्थ सामन्त भी होता है। शान्त्याचार्य "राजमान्य प्रधान पुरुष" अर्थ करते हैं।
'गण' से अभिप्राय गणतन्त्र के लोगों से है। भगवान महावीर के समय में लिच्छवि एवं शाक्य आदि अनेक शक्तिशाली गणतन्त्र राज्य थे। बृज्जी गणतन्त्र में ९ लिच्छवि और ९ मल्लकी-ये काशी-कौशल के १८ गणराज्य सम्मिलित थे। कल्पसूत्र में इन्हें "गणरायाणो" लिखा है।
IMPORTANT NOTES
Verse 1-The word samstava has two meanings-salutation and acquaintance. Here acquaintance is suited. There are two types of acquaintances-samwas-samstava or living in acquaintance and vachan-samstava or talking-to acquaintance. To live with unrighteous persons is living in acquaintance and to converse with such persons is vachan-samstava or talking-to acquaintance. Both are forbidden for an aspirant. (Churni)
Verse 7—Here ten types of augury is mentioned. Leaving aside three-1. dand-vidya, 2. svaravidya and 3. vaastu-vidya, the remaining seven are limbs of Ashtanga Nimitta (eight limbed science of divination)-1. anga, 2. svar, 3. lakshan, 4. vyanjan, 5. svapna, 6. chhinna, 7. bhaum, and 8. antariksha.
1. chhinna-nimitta-divining by study of cuts and holes in wood, cloth, pot etc. caused by thorns or mice.
2. svar-nimitta--divining by study of sound including the seven musical notes.
3. bhaum-nimitta-divining by study of abnormal changes in the earth including vibrations due to earthquake or growth of non-seasonal flowers-fruits etc. during a famine. Divination about underground metals and treasures is also included in this subject.