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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
One who does not get angry or hostile towards a householder if he does not offer or refuses to give when sought, things like bed, seat, water and food and other variety of eatables, is a true ascetic. (11)
पञ्चदश अध्ययन [ 178]
जं किंचि आहारपाणं विविहं, खाइम - साइमं परेसिं लद्धुं ।
तं तव नाणुकंपे, मण-वय-कायसुसंवुडे स भिक्खू ॥ १२ ॥
गृहस्थों से विभिन्न प्रकार के भोजन - पानी - खाद्य-स्वाद्य पदार्थ प्राप्त करके बदले में उन पर अनुकम्पा नहीं करता - आशीर्वाद नहीं देता-उपकार नहीं करता, अपितु मन-वचन-काया से सुसंवृत्त रहता है; वह भिक्षु है ॥ १२ ॥
On getting a variety of ashan, paan, khadya, svadya (staple food, liquids, general food and savoury food), he who does not express any compassion (by blessing or other favours) in exchange, but remains completely composed in mind, speech and body is a true ascetic. (12)
आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं च सोवीर - जवोदगं च । नो हीलए पिण्डं नीरसं तु, पन्तकुलाई परिव्वए स भिक्खू ॥ १३ ॥
धान्य, यव का ओसामण, ठंडा भोजन, कांजी का पानी तथा जौ का पानी ऐसे स्वादरहित भोजन की जो निन्दा नहीं करता; साधारण घरों में भिक्षाटन करता है; वह भिक्षु है ॥ १३ ॥
He who does not detest or belittle rice-water, barley-pap, cold-sour gruel, barley wash and other tasteless food and wanders for alms from ordinary houses is a true ascetic. (13)
सद्दा विविहा भवन्ति लोए, दिव्वा माणुस्सगा तहा तिरिच्छा । भीमा भयभेरवा उराला, जो सोच्चा न वहिज्जई स भिक्खू ॥ १४ ॥
जगत् में देव सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी तथा तिर्यंच सम्बन्धी अनेक भीषण, भयोत्पादक और रौद्र शब्द होते हैं, जो उन शब्दों को सुनकर भयभीत नहीं होता; वह भिक्षु है ॥ १४ ॥
One who is not terrified on hearing dreadful, frightful, awful noises of divine, human and animal origin in this world is a true ascetic. (14)
वादं विविहं समिच्च लोए, सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसन्ते अविहेडए स भिक्खू ॥ १५ ॥
इस जगत् में प्रचलित धर्म सम्बन्धी अनेक प्रकार के वादों को जानकर भी जो अपने ज्ञान - दर्शन - चारित्र से युक्त होकर संयम में संलग्न रहता है, जिसे शास्त्रों के परामर्थ का ज्ञान है, जो प्राज्ञ है, परीषहों पर विजय प्राप्त कर जो सबके प्रति समदृष्टि रखता है, उपशान्त है, किसी का न अपमान करता है, न पीड़ा देता है; वह भिक्षु है ॥ १५ ॥
Even after knowing numerous prevailing religious theories (of various sects and schools), one who remains steadfast in his right knowledge-faith-conduct as well as restraint,,who is well versed in scriptural knowledge, who is wise and intelligent, who conquers afflictions and is equanimous towards all, who is serene and who neither insults nor injures is a true ascetic. (15)