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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
(Priest-) We have enjoyed enough sensual pleasures. Our youth also is on the vane. I am not renouncing these pleasures for the sake of a divine life but to follow the ascetic conduct with equanimity in gain and loss or pleasure and pain. (32)
माहू तुमं सोयरियाण संभरे, जुण्णो व हंसो पडिसोत्तगामी । जाहि भोगाइ म समाणं, दुक्खं खु भिक्खायरियाविहारो ॥ ३३ ॥
चतुर्दश अध्ययन [ 168 ]
(पुरोहित-पत्नी - ) स्वामी ! धारा के विपरीत तैरने वाले प्रतिस्रोतगामी वृद्ध हंस के समान आपको भी कहीं अपने बन्धुओं को याद न करना पड़े। अतः मेरे साथ भोग भोगो । भिक्षाचर्या और विहार निश्चित रूप से बहुत ही कष्टकारी हैं ॥ ३३ ॥
(Priest's wife-) Therefore, enjoy pleasures with me least you may be forced to remember your brothers like the old swan swimming against the current had to. Almsseeking and wandering are, indeed, very painful. (33)
जय भोई ! तयं भुयंगो, निम्मोयणिं हिच्च पलेइ मुत्तो । जाया हन्ति भोए, ते हं कहं नाणुगमिस्समेक्को ॥ ३४ ॥
( पुरोहित - ) जिस तरह भुजंग अपने शरीर की केंचुली छोड़कर मुक्त मन से चलता है उसी प्रकार ये दोनों पुत्र भोगों का त्याग कर रहे हैं। अब मैं अकेला रहकर क्या करूँगा ? क्यों न इनका ही अनुगमन करूँ ? ॥ ३४॥
(Priest-) As a serpent casts off the slough of his body and moves free and easy, in the same way my sons are renouncing pleasures. Now left alone, what would I do? Why not just follow them ? ( 34 )
छिन्दित्तु जालं अबलं व रोहिया, मच्छा जहा कामगुणे पहाय ।
धोरेयसीला तवसा उदारा, धीरा हु भिक्खायरियं चरिन्ति ॥ ३५ ॥
जिस प्रकार कमजोर जाल को काटकर रोहित मत्स्य निकल जाते हैं, उसी प्रकार धारण किये हुए संयम के गुरुतर भार को वहन करने वाले प्रधान तपस्वी, धीर साधक कामगुणों को त्यागकर भिक्षाचर्या रूप श्रमणधर्म पर चल पड़ते हैं ॥ ३५ ॥
As Rohit fishes break through a weak net, in the same way accomplished observers of austerities and resolute aspirants, bearing the huge burden of vowed restraint, renounce worldly pleasures to move on the path of alms-seeking, the Shraman religion. ( 35 )
जव कुंचा समइक्कमन्ता, तयाणि जालाणि दलित्तु हंसा । पन्ति पुत्ताय पई य मज्झं, तेहं कहं नाणुगमिस्समेक्का ? ॥ ३६ ॥
(पुरोहित पत्नी - ) जैसे क्रौंच पक्षी और हंस बहेलिये द्वारा बिछाये गये जाल को काटकर आकाश में स्वतंत्र उड़ जाते हैं, उसी प्रकार मेरे पुत्र और पति भी जा रहे हैं। तब मैं अकेली रहकर क्या करूँगी ? क्यों न मैं भी इनका ही अनुगमन करूँ ? ॥ ३६ ॥
(Priest's wife-) As herons and swans cut the net spread by a fowler and fly free in the sky; in the same way my husband and sons are also going. Then left alone what would I do? Why not follow them ? (36)