________________
तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
त्रयोदश अध्ययन [142 ]
विचरण करते हुये वे हस्तिनापुर जा पहुँचे। उद्यान में ठहरे। सम्भूत मुनि गोचरी हेतु निकले। राजमार्ग पर गजगति से चल रहे थे। उस समय मंत्री नमुचि अपने भवन के गवाक्ष में बैठा था। सम्भूत मुनि उसकी दृष्टि में आ गये। 'कहीं ये मुनि मेरा रहस्य न प्रगट कर दे' इस आशंका से ग्रसित होकर उसने अपने सुभटों को आदेश दिया कि इस श्रमण को मार-पीटकर नगर से बाहर निकाल दो। ___ मंत्री नमुचि के सुभटों ने सम्भूत मुनि को मुक्कों, लातों, लाठियों से खूब पीटा, मारते ही चले गये। समताभावी सम्भूत मुनि उस मार को सहते रहे, सहते रहे। ____ लेकिन सहन-शक्ति की भी एक सीमा होती है। अत्याचारी के अत्याचार जब सीमा से बढ़ जाते हैं तो शीतल चन्दन भी आग उगलने लगता है। निर्मम पिटाई से संभूत मुनि का हृदय भी अशांत हो गया। लब्धिवंत तो थे ही. तेजोलेश्या प्रगट करके मुख खोल दिया। उनके मुख से तेज धुंआ निकलने लगा। कुछ ही क्षणों में धुंआ सम्पूर्ण हस्तिनापुर नगर के आकाश में छा गया। लोग भयभीत हो गये। स्वयं चक्रवर्ती भी चकित और भयभीत हुआ। अपनी पटरानी सुनन्दा के साथ आया और संभूत मुनि से क्रोध को शांत करने की प्रार्थना करने लगा, जनता तो प्रार्थना कर ही रही थी। चित्र मुनि भी आ गये। उन्होंने संभूत मुनि को समझाया। उनके समझाने से संभूत मुनि का क्रोध उपशान्त हुआ। उन्होंने अपनी तेजोलेश्या समेट ली। नगर की रक्षा हो गई।
चक्रवर्ती सनत्कुमार ने भावभक्तिपूर्वक सम्भूत मुनि को वन्दन किया; पटरानी सुनन्दा ने भी झुककर प्रमाण किया। असावधानीवश उसके लम्बे कोमल सचिक्कण केशों का स्पर्श संभूत मुनि के पैरों से हो गया। मुनि का चित्त चंचल हो गया। उन्होंने निदान किया-'यदि मेरी तपस्या का कुछ भी फल हो तो मैं भविष्य में चक्रवर्ती बनकर संसार के अनुपम सुख भोगूं।'
चित्र और संभूत-दोनों ने अनशन किया और दोनों ने कालधर्म प्राप्त किया। लेकिन संभूत मुनि ने अन्तिम समय तक अपने निदान की आलोचना नहीं की। कालधर्म प्राप्त कर दोनों मुनि सौधर्म देवलोक के पद्मगुल्म विमान में देव बने।
वहाँ का आयुष्य पूर्ण कर संभूत मुनि के जीव ने काम्पिल्य नगर के ब्रह्म राजा की रानी चूलनी की कुक्षि से जन्म लिया और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बनकर सांसारिक सुखों का भोग करने लगा।
चित्र मुनि के जीव ने पुरिमताल नगर के एक अत्यधिक धनाढ्य सेठ के पुत्ररूप में जन्म ग्रहण किया। स्थविरों का उपदेश सनकर उसे जातिस्मरण ज्ञान हआ। श्रामणी दीक्षा ग्रहण करके तप-संयम में लीन हो गया।
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती एक बार नाटक देख रहा था। नाटक देखते-देखते उसके मन में विचार आया-'ऐसा नाटक मैंने पहले भी कभी देखा है। पर कब और कहाँ ?' इस प्रकार मनोमंथन करतेकरते उसे अपने पाँच पूर्व-जन्मों की स्मृति हो आई (चित्र देखें)। वह अपने भाई चित्र की स्मृति में विकल हो गया। उसकी खोज करने के लिये ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने श्लोक की एक पंक्ति बनाई
और घोषणा की-"जो इस श्लोक की पूर्ति करेगा, उसे मैं अपना आधा राज्य दे दूँगा।" श्लोक का पूर्वार्द्ध था
आश्व दासौ मृगौ हंसौ, मातंगाऽवमरौ तथा।