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________________ [141] त्रयोदश अध्ययन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र - राजहंस की योनि से निकलकर दोनों वाराणसी के अति समृद्ध और चाण्डालों के अधिपति भूतदत्त के पुत्ररूप में उत्पन्न हुए। उनके नाम चित्र और संभूत रखे गये। दोनों भाइयों में परस्पर बहुत प्रेम था। उनका रूप भी सुन्दर था। वाराणसी में उस समय राजा शंख राज्य करता था। उसका मंत्री नमुचि था। किसी भयंकर अपराध पर राजा शंख ने नमुचि को मृत्यु-दण्ड दिया। वध का कार्य चाण्डाल भूतदत्त करता था। नमुचि ने उससे प्राण-भिक्षा माँगी। तब भूतदत्त ने शर्त रखी कि “यदि आप मेरे पुत्रों को अध्ययन करायें, विद्या सिखाएँ, तो मैं आपको अपने भूमिगृह (तहखाने) में छिपाकर रख सकता हूँ।" नमुचि ने यह शर्त स्वीकार कर ली। भूतदत्त ने उसे अपने घर में छिपा लिया। नमुचि के प्राण बच गये। ___ नमुचि ने कुछ ही वर्षों में दोनों चाण्डाल-पुत्रों को कई विद्याओं में प्रवीण बना दिया। चाण्डाल-पत्नी भोजनादि से नमुचि की सेवा करती थी। नमुचि ने उससे अनुचित सम्बन्ध बना लिये। भूतदत्त को ज्यों ही मालूम हुआ तो उसने नमुचि के वध का निश्चय कर लिया। परन्तु चित्र-सम्भूत ने गुरु के प्रति कृतज्ञतावश नमुचि को सूचित कर दिया और घर से सुरक्षित निकाल दिया। .नमुचि वहाँ से भागकर हस्तिनापुर पहुँचा और चक्रवर्ती सनत्कुमार का मंत्री बन गया। एक बार वाराणसी में कोई उत्सव हुआ। उसमें चित्र-संभूत भी सम्मिलित हुये। उन्होंने मधुर कंठ से संगीत विद्या का प्रदर्शन किया तो श्रोतागण मंत्र-मुग्ध हो गये। जनसाधारण स्पर्श्य-अस्पर्श्य का भेद ही भूल गये। किन्तु कुछ ब्राह्मणों का जात्याभिमान जाग उठा। उन्होंने राजा से शिकायत कर दी। राजा ने नगर निष्कासन का दण्ड दिया। दोनों भाई नगर से निकाल दिये गये। वे नगर से बाहर किसी अन्य स्थान पर रहने लगे। ___ वाराणसी में कौमुदी महोत्सव का आयोजन हुआ। कलाकार की सबसे बड़ी कमजोरी यह होती है कि वह अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिये सदैव उत्सुक रहता है। कपड़े से मुख ढंककर दोनों भाई उत्सव में सम्मिलित होकर अपनी संगीत कला का प्रदर्शन करने लगे। जनता मंत्र-मुग्ध हो गई। लेकिन स्वर से इन्हें पहचान लिया गया। वस्त्र हटाकर देखा तो सारा रहस्य स्पष्ट हो गया। इस बार कट्टर जाति अभिमानियों ने स्वयं ही इन दोनों भाइयों को मारा-पीटा और नगर से बाहर निकाल दिया। चित्र-संभूत-दोनों भाइयों को इस बार का तिरस्कार बहुत बुरा लगा। वे समझ गये हीन कुल में उत्पन्न होने के कारण उन्हें कहीं भी स्नेह, मान-सम्मान नहीं मिल सकता। उनकी सारी कलाएँ व्यर्थ हैं। क्षुब्ध होकर उन्होंने निर्णय किया-'इस अपमानपूर्ण जीवन से तो मृत्यु ही भली' और आत्म-हत्या का निर्णय करके वे एक पर्वत पर जा चढ़े। वहाँ से गिरने वाले ही थे कि किसी श्रमण ने उन्हें देख लिया, आत्म-हत्या से रोका, समझाया और उनका समस्त वीतक सुनकर कहा-“यदि तुम श्रमण बन जाओ तो सम्मान का जीवन जी सकोगे।" ___मुनि की प्रेरणा से चित्र-संभूत-दोनों ने श्रामणी दीक्षा स्वीकार कर ली। गुरु-कृपा से ज्ञानाभ्यास किया, उग्र तपश्चर्या करने लगे। फलस्वरूप अनेक लब्धियाँ प्राप्त हो गईं। गीतार्थ बनकर विचरण करने लगे।
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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