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सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
द्वादश अध्ययन [128]
बारसमं अज्झयणं : हरिएसिज्ज द्वादश अध्ययन : हरिकेशीय Chapter-12 : HARIKESH
सोवागकुलसंभूओ, गुणुत्तरधरो मुणी।
हरिएसबलो नाम, आसि भिक्ख जिइन्दिओ॥१॥ हरिकेशबल नामक मुनि श्वपाक-चाण्डाल-कुल में उत्पन्न हुये थे किन्तु वे क्षमा आदि उत्तम गुणों को धारण करने वाले जितेन्द्रिय भिक्षु थे॥ १॥
Ascetic Harikesh-bala was born in Shvapaak (chandaal) clan; but he was an ascetic endowed with great virtues including forgiveness and had conquered his senses. (1)
इरि-एसण-भासाए, उच्चार-समिईसु य।
जओ आयाणनिक्खेवे, संजओ सुसमाहिओ॥२॥ ईर्या, भाषा, एषणा, उच्चार-प्रस्रवण-खेल्ल-जल्ल परिष्ठापनिका एवं आदान-निक्षेपण-इन पाँच समितियों में यतनाशील, सुसमाधिस्थ एवं संयत थे॥२॥
___He was alertin five circumspections (samitis) of movement (irya), speech (bhasha), alms-seeking (eshana), (4) disposal of excreta (uchchaar-prasravan-khella-jalla parishthapanika) as well as give and take (aadaan-nikshepan), as also serene and selfcontrolled. (2)
मणगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइन्दिओ।
भिक्खट्ठा बम्भ-इज्जमि, जन्नवाडं उवढिओ॥३॥ मन-वचन-काय गुप्तियों से गुप्त, इन्द्रियविजयी मुनि हरिकेशबल एक दिन भिक्षा हेतु ब्राह्मणों द्वारा संपादित यज्ञ-मंडप में पहुँचे॥३॥
Restrained by three restraints (gupti) of mind, speech and body, ascetic Harikeshbala, the conqueror of senses, while seeking alms, arrived in a yajna enclosure managed by Brahmins. (3)
तं पासिऊणमेज्जन्तं, तवेण परिसोसियं।
पन्तोवहिउवगरणं, उवहसन्ति अणारिया॥४॥ तप से कृश हुए शरीर वाले तथा मलिन एवं जीर्ण उपकरण वाले मुनि को यज्ञ-मंडप की ओर आते देखकर अनार्य-अशिष्ट व्यक्ति उनका उपहास करने लगे॥ ४॥
When they saw an ascetic, with penance-emaciated body, dressed in rags and carrying old and shabby ascetic-equipment, approaching the yajna enclosure, the rustic gathering of people started making fun of him. (4)