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________________ Seksksksesaksesakske.ske.sakshe sakes skesake.ske.ske.ke.ske.slesslesses slesakas slesslesaksakeseke kesekasked Makke.ke.sleleasesakse.kesalesalese.ske.slesslesske.ske.sakssesslesslesslesslesslesale.slette ने सूत्रकृतांग, प्रश्नव्याकरण और भगवती जैसे विशाल जैन सूत्रों की हिन्दी टीकाएँ लिखकर स्व. * आचार्यदेव श्री आत्माराम जी म. सा. के श्रुत-सेवा के अवशिष्ट कार्य को पूर्णता प्रदान करने का * महान् प्रयत्न किया है। आगम सम्पादन की उसी उज्ज्वल परम्परा में अब एक अभिनव शुभ प्रयत्न * सम्पन्न हो रहा है-उत्तराध्ययनसूत्र का चित्रमय प्रकाशन। न कुछ वर्ष पूर्व कल्पसूत्र का सचित्र प्रकाशन हुआ था। वह हमारे सामने है। प्राचीन चित्र-शैली के छोटे-छोटे चित्र हैं उसमें। प्राचीनता की दृष्टि से या स्वर्ण-खचित होने की दृष्टि से उनका अपना महत्व है, किन्तु चित्रों की रमणीयता, सहज भावाभिव्यक्ति और रंग-सज्जा की दृष्टि से कोई उल्लेखनीय बात उनमें नहीं लगती। कल्पसूत्र के अतिरिक्त अन्य आगमों का चित्रमय प्रकाशन अब तक देखने में नहीं आया है। एक वर्ष पूर्व हमने जब श्री उत्तराध्ययनसूत्र के चित्रमय प्रकाशन की योजना बनाई थी, तो हमारे सामने किसी प्राचीन सचित्र आगम का आधार नहीं था। इस विषय में * अनेक विद्वानों से सम्पर्क किया गया। कुछ ज्ञान-भंडारों का अवलोकन भी किया। इसी प्रसंग में * श्री तिलोकरत्न स्थानकवासी जैन परीक्षा बोर्ड अहमदनगर का हस्तलिखित शास्त्र भंडार भी देखने * की सुविधा प्राप्त हुई। पूज्य आचार्यसम्राट् श्री आनन्द ऋषि जी म. सा. की कृपा से श्री कुन्दन ऋषि के जी म. सा. ने स्वयं बड़ी उदारतापूर्वक ज्ञान भंडार की अनेक सचित्र प्रतियाँ दिखाईं। उनमें उत्तराध्ययनसूत्र के भी कुछ प्रासंगिक चित्र प्राप्त हुये जिनमें भारंड पक्षी का प्राचीन चित्र महत्वपूर्ण था। इसके पश्चात् कला मर्मज्ञ श्री विजय यशोदेव सूरि जी म. सा. के ज्ञान भंडार जैन साहित्य मन्दिर पालीताणा में भी दो दिन तक मैंने प्राचीन सचित्र आगमों का अनुसंधान किया। स्वयं आचार्य ॐ श्री यशोदेव सूरि जी म. सा. ने उत्तराध्ययनसूत्र की स्वर्णाक्षरों में लिखित कुछ प्राचीन प्रतियाँ तथा एक स्वर्ण-चित्रांकित प्रति भी बताई। इस अवलोकन से हमें प्राचीन चित्र-शैली को समझने तथा उसे आधुनिक चित्र-शैली में परिवर्तित करने की कल्पना में काफी सहायता मिली। हम उक्त ज्ञान भंडारों व आचार्यदेवों की कृपा के सदा ऋणी रहेंगे। ___उत्तराध्ययनसूत्र के ३६ अध्ययनों के ६१ बहुरंगी चित्र इस आगम के लिये तैयार किये गये हैं। चित्र संख्या की निश्चित सीमा के कारण अन्य अनेक उपयोगी विषयों को छोड़ भी दिया है। * चित्रों की कल्पना में आगम की टीका आदि के वर्णन, अन्य ग्रन्थों के वर्णन तथा प्राचीन परम्परा हमारी सहायक रही है। चूँकि इन चित्रों का मूल आधार कोई प्राचीन चित्र नहीं है, किन्तु सिर्फ * टीकागत जानकारी एवं हमारी परम्परा ही है, अतः इनके रूपांकन में मतभेद भी रह सकते हैं और * भूल भी रह सकती हैं। अपनी-अपनी दृष्टि से भिन्न प्रस्तुतीकरण भी हो सकता है। अत: इन चित्रों के साथ हमारा कोई आग्रह या स्थापना नहीं है, किन्तु मात्र आगमों के गंभीर विषय को सुबोध तथा रुचिकर बनाने की दिशा में एक शुभ अध्यवसाययुक्त प्रयत्न है। जहाँ-जहाँ मुनि की वेश-भूषा का Sankerlesslesslesslesalesalesakesslesakestrokesakskskskskesiksakesesakesaksksksksclesslesslesslessismolesalelesslesalt (12) &ঙ্কফুফুরুক্ষ
SR No.002494
Book TitleAgam 30 mool 03 Uttaradhyayana Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages726
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size28 MB
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