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[87] नवम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
नवमं अज्झयणं : नमिपव्वज्जा
नवम अध्ययन : नमिप्रव्रज्या Chapter-9 : THE INITIATION OF NAMI
चइऊण देवलोगाओ, उववन्नो माणुसंमि लोगंमि।
उवसन्त-मोहणिज्जो, सरई पोराणियं जाइं॥१॥ देवलोक का अपना आयुष्य पूर्ण कर (नमि राजा) मानव लोक में उत्पन्न हुए। मोह उपशांत होने पर उन्हें पूर्वजन्म की स्मृत्ति-जातिस्मरण ज्ञान हुआ॥१॥
On completion of his life-span in the divine realm (king Nami) was reborn in the land of humans. On pacification of his deluding karmas, he remembered his past birth (jati-smaranjnana). (1)
जाई सरित्तु भयवं, सहसंबुद्धो अणुत्तरे धम्मे।
पुत्तं ठवेत्तु रज्जे, अभिंणिक्खमई नमी राया॥२॥ पूर्वजन्म का स्मरण हो जाने पर भगवान नमिराज स्वयं संबुद्ध हुये और अनुत्तर धर्म के परिपालन हेतु तत्पर होकर अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बिठाकर अभिनिष्क्रमण किया॥२॥
On remembering his past birth king Nami became self-enlightened and after crowning his son he renounced the world in order to pursue the supreme spiritual path. (2)
से देवलोग-सरिसे, अन्तेउरवरगओ वरे भोए।
भुंजित्तु नमी राया, बुद्धो भोगे परिच्चयई॥३॥ अपने अन्त:पुर में रहकर देवलोक के समान श्रेष्ठ भोगों को भोगकर नमिराज प्रतिबद्ध हुये और उन्होंने भोगों का परित्याग कर दिया॥ ३ ॥
After enjoying divine-like exquisite pleasures and comforts of his palace king Nami became enlightened and renounced all pleasures and comforts. (3)
मिहिलं सपुरजणवयं, बलमोरोहं च परियणं सव्वं।
चिच्चा अभिनिक्खन्तो, एगन्तमहिट्ठिओ. भयवं॥४॥ अपने पुर, जनपद, मिथिला नगरी, सेना, अन्त:पुर तथा समस्त परिजनों का परित्याग करके भगवान नमिराज ने अभिनिष्क्रमण किया और एकान्तवासी बने॥ ४॥
Leaving his palace, kingdom of Mithila city, state, army, retinue and the entire family as well as relatives, venerable king Nami moved out and went into solitude. (4)
कोलाहलगभूयं, आसी मिहिलाए पव्वयन्तंमि।
तइया रायरिसिंमि, नमिमि अभिणिक्खमन्तंमि॥५॥ जिस समय नमि राजर्षि अभिनिष्क्रमण करके प्रव्रजित हो रहे थे उस समय मिथिला नगरी में सर्वत्र बहुत कोलाहल हो रहा था ॥ ५॥