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[79 ] अष्टम अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
अट्ठमं अज्झयणं : काविलीयं अष्टम अध्ययन : कापिलीय Chapter-8: ABOUT KAPIL
अधुवे
असासयंमि, संसारंमि दुक्खपउराए । किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाऽहं दोग्गइं न गच्छेज्जा ? ॥ १ ॥
यह संसार अध्रुव, नश्वर, अनित्य और प्रचुर दुःख से भरा है। ऐसा कौन-सा कर्म है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊँ ? ॥१॥
This world is transient, destructible, impermanent and full of miseries. What are the deeds that can help me avoid a rebirth in lower states? (1)
विजहित्तु पुव्वसंजोगं, न सिणेहं कहिंचि कुव्वेज्जा । असिणेह सिणेहकरेहिं, दोस-पओसेहिं मुच्चए भिक्खू ॥ २ ॥
पूर्व संयोगों का परित्याग करके फिर किसी भी पदार्थ के प्रति स्नेह न करे, प्रेम करने वालों के प्रति भी स्नेहरहित रहने वाला भिक्षु दोष और प्रदोषों से मुक्त हो जाता है ॥ २ ॥
Abandoning the former links, avoiding fondness for any substance and being free of love, even for those who love, an ascetic becomes free from faults as well as grave faults. (2)
तो नाण- दंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए, भासई मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥
तब केवलज्ञान - केवलदर्शन से संपन्न तथा मोह से पूर्णतः मुक्त मुनिवर (कपिल केवली) ने सभी जीवों के कल्याण, हित तथा उनके मोक्ष के लिये उपदेश दिया ॥ ३ ॥
After that the sage (Kapil Kevali), endowed with Keval-jnana and Keval-darshan (omniscience and omni-perception) and completely devoid of fondness, gave a discourse for the beatitude and salvation of all beings. (3)
सव्वं गन्धं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजासु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥
भिक्षु कर्मबन्धन के कारण सभी प्रकार के परिग्रह का और कलह के कारणों का त्याग करे तथा सभी कामभोगों के कटु परिणामों को देखकर आत्म-रक्षक मुनि उनसे निर्लिप्त रहे ॥ ४ ॥
An ascetic should renounce all type of possession and all causes of dispute. Observing the bitter consequences of all and any mundane indulgences, or worldly pleasures, the sage protecting his soul should remain detached from them. (4)
भोगामिसदोसविसण्णे, हियनिस्सेयसबुद्धि-वोच्चत्थे ।
बा मन्दि मूढे, बज्झई मच्छिया व खेलंमि ॥ ५ ॥