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तर सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
सप्तम अध्ययन [72]
People, who learn various types of religious tenets (codes) and observe noble code of conduct even as householders, are again reborn as human beings. This is because living beings depend on karmas. All beings have to bear the fruits of their karmus (karmic bondage). (20)
जेंसि तु विउला सिक्खा, मूलियं ते अइच्छिया।
सीलवन्ता सवीसेसा, अहीणा जन्ति देवयं ॥२१॥ किन्तु जिन मानवों की शिक्षा विविध परिमाण वाली और व्यापक है-विशाल है, तथा वे शीलवान और उत्तरोत्तर गुण-प्राप्ति की विशेषता से युक्त हैं, दीनतारहित हैं, वे मूलधन रूप मनुष्यत्व से आगे बढ़कर देवत्व को प्राप्त करते हैं ॥ २१॥
However, people who gain very wide knowledge, are endowed with righteousness as well as ever enhancing virtues and are free of feebleness, they multiply their capital of manhood to gain divinity. (21)
एवमद्दीणवं भिक्खं, अगारिं च वियाणिया।
कहण्णु जिच्चमेलिक्खं, जिच्चमाणे न संविदे? ॥२२॥ इस प्रकार दीनतारहित भिक्षु और गृहस्थ (महाव्रती तथा अणुव्रती साधक) को लाभ प्राप्त करते देखकर कौन विवेकी व्यक्ति उस लाभ को गँवायेगा और उस लाभ को गँवाता हुआ कौन पश्चात्ताप नहीं करेगा? ॥ २२॥
Seeing and knowing the benefits accruing to such accomplished ascetic and householder (observer of great and minor vows), what discerning person would like to lose such gains and not repent losing such gains? (22)
जहा कुसग्गे उदगं, समुद्देण समं मिणे।
एवं माणुस्सगा कामा, देवकामाण अन्तिए॥२३॥ देवों के कामभोगों के समक्ष मनुष्य के कांमभोग ऐसे ही क्षुद्र हैं, जैसे समुद्र की अपेक्षा कुशाग्र पर टिका हुआ जलबिन्दु क्षुद्र होता है॥ २३॥
Like a drop of dew on the tip of a blade of grass as compared with ocean, the pleasures and comforts of human beings are insignificant as compared with those of divine beings. (23)
कुसग्गमेत्ता इमे कामा, सन्निरुद्धमि आउए।
कस्स हेडं पुराकाउं, जोगक्खेमं न संविदे? ॥२४॥ मानव की आयु अत्यल्प है, संनिरुद्ध है। इसमें प्राप्त कामभोग कुश के अग्र भाग पर स्थित जलबिन्दु के समान हैं। फिर न जाने किस कारण से प्राणी (अज्ञानी) अपने योग-क्षेम को नहीं समझता ॥ २४॥
The life-span of man is very short and it is strewn with obstacles. The available mundane pleasures are like a dew-drop at a grass-tip. Even then, why an ignorant