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[45] चतुर्थ अध्ययन
सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
जेऽसंखया तुच्छ परप्पवाई, ते पिज्ज-दोसाणुगया परज्झा। एए'अहम्मे' त्ति दुगुंछमाणो, कंखे गुणे जाव सरीर-भेओ॥१३॥
-त्ति बेमि। जो लोग कृत्रिम रूप से संस्कारी हैं, वे जीवन को सांधने योग्य मानते हैं। ऐसे लोग तुच्छ हैं, पर-प्रवादी हैं (दूसरों के निन्दक हैं), राग-द्वेष से ग्रस्त हैं, परवश (वासनाओं के वशीभूत) हैं। इन्हें अधर्मी जानकर साधक इनसे दूर रहे और देह-त्याग (आयु के अन्तिम क्षणों) तक सद्गुणों (अप्रमत्तता) की काक्षा-आराधना करता रहे ॥१३॥
-ऐसा मैं कहता हूँ। Those who pose to be pure consider life to be repairable. Such persons are worthless, accusers of others, victims of attachment and aversion and slaves of desires. Considering them to be irreligious and impious, the aspirant should keep away from them and continue to practise virtues (including alertness) till he leaves his body (last moments of life). (13)
-So I say.
विशेष स्पष्टीकरण भारण्ड पक्षी पौराणिक युग का एक विराटकाय पक्षी माना गया है। पंचतंत्र आदि में उसके दो ग्रीवा और एक पेट बताया गया है-"एकोदराः पृथग् ग्रीवा।" कल्पसूत्र की किरणावली टीका में भी उसके दो मुख और दो जिह्वा का उल्लेख है। इसका अर्थ है कि दो ग्रीवा एवं दो मुख होने से उसके आँख, कान आदि सब दो-दो हैं। जब वह एक ग्रीवा से भोजन करता है, तो दूसरी ग्रीवा को ऊपर किये हुये आँखों से देखता रहता है कि कोई मुझ पर आक्रमण तो नहीं करता है। इस दृष्टि से साधक को अप्रमत्तता के लिये भारण्ड पक्षी की उपमा दी जाती है। कल्पसूत्र में भगवान महावीर को भी अप्रमत्तता एवं सतत जागरूकता के लिये भारंड पक्षी की उपमा दी जाती है। कल्पसूत्र में भगवान महावीर को भी अप्रमत्तता एवं सतत जागरूकता के लिये भारंड पक्षी की उपमा दी है। उक्त पक्षी का वर्णन वसुदेवहिण्डी आदि अनेक प्राचीन जैन-कथा-ग्रन्थों में भी आता है।
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IMPORTANT NOTES
Bhaarand is a mythical bird of giant proportions. According to Panchatantra it has two necks and one stomach'. In Kiranavli commentary (Tika) of Kalpasutra there is a mention of this bird having two mouths and two tongues. This means that having two necks it also has two sets of ears, nose and eyes. Thus when it feeds with the mouth on one neck at that time it turns the other neck up keeps a watch with the second set of eyes for any possible attack. It is in this context that the alertness of an aspirant is given the simile of Bhaarand bird. This metaphor has also been used in Kalpasutra for the absolute and perpetual alertness of Bhagavan Mahavir. The description of this bird finds mention in many ancient Jain narrative works including Vasudevahindi.