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an सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र
चतुर्थ अध्ययन [44]
स पुव्वमेवं न लभेज्ज पच्छा, एसोवमा सासय-वाइयाणं।
विसीयई सिढिले आउयंमि, कालोवणीए सरीरस्स भेए॥९॥ जो साधक साधना के प्रारम्भिक वर्षों में अप्रमत्त-जागृत नहीं रहता, वह बाद में भी अप्रमत्त नहीं हो सकता-यह धारणा ज्ञानीजनों की है। शाश्वतवादियों की धारणा इसके विपरीत है कि आयु के अन्तिम समय में अप्रमत्त हो जायेंगे। आयु के शिक्षित होने पर तथा मृत्यु के प्रभाव से शरीर छूटने के समय वह (शाश्वतवादी) खेदित होता है॥९॥
The sagacious believe that an aspirant who does not remain alert (apramatta) during the formative period of practices, cannot become alert later. The eternalists (shushvatvaadi) have contrary belief that alertness could be achieved during the last phase of life. However, they are disappointed at the time of death when life-force gets weak and the body is about to abandoned. (9)
खिप्पं न सक्केइ विवेगमेऊं, तम्हा समुट्ठाय पहाय कामे।
समिच्च लोयं समया महेसी, अप्पाण-रक्खी चरमप्पमत्तो॥१०॥ ___ कोई व्यक्ति तत्काल ही विवेक (त्याग) करने में समर्थ नहीं हो सकता। इसलिये सभी से कामभोगों को त्यागकर, मोक्षमार्ग में उद्यत होकर, प्राणिजगत् का समभाव से अवलोकन करे। आत्मा की रक्षा करने वाला महर्षि अप्रमत्त होकर विचरण करे॥१०॥
No one is capable of gaining sagacity at once. As such, an aspirant should renounce sensual pleasures, launch himself on the path of liberation and observe the world of the living with equanimity. Committed to guarding his soul, the great sage should be ever alert in his movement. (10)
मुहं मुहं मोह-गुणे जयन्तं, अणेग-रूवा समणं चरन्तं।
फासा फुसन्ती असमंजसं च, न तेसु भिक्खू मणसा पउस्से ॥११॥ बार-बार मोहगुणों, शब्द आदि विषयों पर विजय प्राप्त करते हुये तथा संयम-मार्ग में विचरण करते हुये श्रमण को अनेक कटु कठोर स्पर्श स्पृष्ट करते हैं, किन्तु वह उन पर मन से भी द्वेष न करे॥ ११॥
While winning over sensual desires and following the path of ascetic-discipline an ascetic faces many bitter and harsh experiences again and again; he should not despise them even in his thoughts. (11)
मन्दा य फासा बहु-लोहणिज्जा, तह-प्पगारेसु मणं न कुज्जा।
रक्खेज्ज कोहं, विणएज्ज माणं, मायं न सेवे, पयहेज्ज लोहं॥१२॥ ___ हिताहित विवेक को मंद करने वाले अनुकूल स्पर्श बहुत लुभावने होते हैं। किन्तु साधक उनमें अपने मन को न लगाए। क्रोध से अपने को बचाये, अभिमान को दूर करे, माया-छल-कपट का सेवन न करे और लोभ को त्याग दे॥१२॥
Pleasurable experiences that dull sagacity are very enticing. But an aspirant should not get involved in them. He should avoid anger, remove pride, not indulge in deceit and abandon greed. (12)