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पढमो उद्देसओ : पुढवी प्रथम उद्देशक : नरक पवियाँ PRATHAM UDDESHAK (FIRST LESSON):
NARAK PRITHVIS (HELLS)
तेरहवें शतक की संग्रहणी गाथा COLLATIVE VERSE १. पुढवी १ देव २ मणंतर ३ पुढवी ४ आहारमेव ५ उववाए ६।
भासा ७ कम्म ८ अणगारे केयाघडिया ९ समुग्घाए १०॥ [१] तेरहवें शतक के दस उद्देशकों के नाम इस प्रकार हैं-(१) पृथ्वी, (२) देव, (३) में अनन्तर, (४) पृथ्वी, (५) आहार, (६) उपपात, (७) भाषा, (८) कर्म, (९) अनगार में है ॐ केयाघटिका और (१०) समुद्घात।
1. The titles of ten lessons of the thirteenth chapter are as follows(1) Prithvi (Hell), (2) Dev (god or divine being), (3) Anantar (Without
Interlude), (4) Prithvi (Hell), (5) Aahaar (Intake), (6) Upapaat (Instant + Birth), (7) Bhaasha (Speech), (8) Karma (Karma), (9) Anagaare Keyaghatika
(Ascetic with Bowl in String), (10) Samudghaat (Bursting Forth). मनरक पृथ्वियों का वर्णन तथा रत्नप्रभा नरक पृथ्वी के नरकावासों की संख्या और उनका विस्तार 5 HELLS AND INFERNAL ABODES IN FIRST HELL
२. रायगिहे जाव एवं वयासी
[२] राजगृह नगर में (श्री गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की वन्दना ॐ करके) यावत् इस प्रकार पूछा5. 2. In Rajagriha city... and so on up to... (Gautam Swami) asked 卐 (Bhagavan Mahavir)
३. [प्र.] कइ णं भंते ! पुढवीओ पन्नत्ताओ? [उ.] गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-रयणप्पभा जाव अहेसत्तमा। ३. [प्र.] भगवन् ! नरक-पृथ्वियाँ कितनी बतायी गई हैं? [उ.] गौतम ! नरक-पृथ्वियाँ सात बतायी गई हैं। यथा-रत्नप्रभा यावत् अधः सप्तम पृथ्वी।
| तेरहवां शतक : प्रथम उद्देशक
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Thirteenth Shatak: First Lesson |