________________
955555555555555555555555555555555
15555555555555555555555555555555555558
द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा का परस्पर नित्य अविनाभावी सम्बन्ध है जिसके कारण द्रव्यात्मा के साथ , + उपयोगात्मा एवं उपयोगात्मा के साथ द्रव्यात्मा अवश्य होती है, क्योंकि द्रव्यात्मा जीव रूप है और उपयोग 卐 उसका लक्षण है, इसलिए दोनों एक-दूसरे के साथ नियम से पाई जाती है।
जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा कदाचित् होती भी है और कदाचित् नहीं भी होती है, ॐ क्योंकि सम्यग्दृष्टि द्रव्यात्मा के ज्ञानात्मा होती है जबकि मिथ्यादृष्टि के सम्यग्ज्ञान-रूप ज्ञानात्मा नहीं होती; 5 लेकिन ज्ञानात्मा के साथ द्रव्यात्मा अवश्य होती है, क्योंकि द्रव्यात्मा के बिना ज्ञानात्मा संभव नहीं है।
द्रव्यात्मा और उपयोगात्मा के समान द्रव्यात्मा और दर्शनात्मा में भी नित्य अविनाभावी सम्बन्ध है; क्योंकि सामान्य अवबोध रूप दर्शन तो प्रत्येक जीव के होता है, यहाँ तक तो सिद्ध भगवान के भी केवलदर्शन होता है। अतः जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा नियम से होती है, जैसे-चक्षुदर्शनादिक
वाले के द्रव्यात्मा होती है और विरति वाले द्रव्यात्मा के साथ ही चारित्रात्मा पाई जाती है परन्तु विरति म रहित संसारी और सिद्ध जीवों में द्रव्यात्मा होने पर भी चारित्रात्मा नहीं पाई जाती है। किन्तु जहाँ चारित्रात्मा के भी होती है, वहाँ द्रव्यात्मा अवश्य होती है, क्योंकि द्रव्यात्मा के बिना चारित्र सम्भव नहीं है।
द्रव्यात्मा के साथ वीर्यात्मा के सम्बन्ध की भजना है; क्योंकि सकरण वीर्ययुक्त प्रत्येक द्रव्यात्मा वाले संसारी जीव के वीर्यात्मा रहती है, किन्तु सिद्धों में सकरण वीर्य न होने से उनकी द्रव्यात्मा के साथ वीर्यात्मा नहीं होती। जहाँ वीर्यात्मा है, वहाँ द्रव्यात्मा अवश्य होती है; क्योंकि वीर्यात्मा वाले समस्त संसारी जीवों में द्रव्यात्मा अवश्यमेव होती है।
कषायात्मा का आगे की छह आत्माओं के साथ सम्बन्ध-जिसके कषायात्मा होती है, उसके ॥ योगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि सकषायी आत्मा अयोगी नहीं होती और जिसके योगात्मा होती है, उसके 5 में कषायात्मा की भजना है, क्योंकि सयोगी आत्मा सकषायी और अकषायी दोनों ही प्रकार की होती है।
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके उपयोगात्मा अवश्य होती है, क्योंकि कोई भी जीव उपयोग से रहित नहीं है। उपयोगात्मा में कषायात्मा की भजना है, क्योंकि ग्यारहवें से लेकर चौदहवें गुणस्थानवर्ती ॐ जीवों में एवं सिद्ध जीवों में उपयोगात्मा तो है, परन्तु कषाय का अभाव है।
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके ज्ञानात्मा की भजना है। क्योंकि मिथ्यादृष्टि के कषायात्मा म तो होती है, किन्तु सम्यग्ज्ञान रूप ज्ञानात्मा नहीं होती। जबकि सकषायी सम्यग्दृष्टि के ज्ञानात्मा होती है।
और जिस जीव के ज्ञानात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भी भजना है, क्योंकि सम्यग्ज्ञानी कषाय सहित भी होते हैं और कषाय रहित भी।
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके दर्शनात्मा अवश्य होती है, जबकि दर्शन रहित घटादि जड़ पदार्थों में कषायों का सर्वथा अभाव है और जिसके दर्शनात्मा होती है, उसके कषायात्मा की भजना है, क्योंकि दर्शनात्मा वाले सकषायी और अकषायी दोनों ही होते हैं।
जिस जीव के कषायात्मा होती है, उसके चारित्रात्मा की भजना है और चारित्रात्मा वाले जीवों के भी कषायात्मा की भजना है, क्योंकि कषाय वाले जीव विरत और अविरत दोनों प्रकार के होते हैं। अथवा ऊ सामायिकादि चारित्र वाले साधकों के कषाय रहती है, जबकि यथाख्यात चारित्र वाले साधक कषाय रहित
होते हैं।
ख995555555)))))))))))))))))))9595555555555559)
| भगवती सूत्र (४)
(418)
Bhagavati Sutra (4)