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विवेचन-प्रस्तुत पाँच सूत्रों ७ से ११ तक में पूर्वोक्त पाँच प्रकार के देवों की उत्पत्ति के स्थानों का वर्णन किया गया है।
भव्य द्रव्यदेवों की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि ये देव असंख्यात वर्ष की आयु वाले, अकर्मभूमिज, अन्तरद्वीपज एवं सर्वार्थसिद्ध के जीवों को छोड़कर अन्य देवों (भवनपति से लेकर अपराजित नामक चतुर्थ अनुत्तर विमान तक) से आकर भव्य द्रव्यदेवों में उत्पन्न होते हैं। असंख्यात वर्ष की आयु वाले, अकर्मभूमिज एवं अन्तरद्वीपज जीव तो सीधे भावदेवों में उत्पन्न होते हैं जिस कारण वे भव्य-द्रव्यदेवों (मनुष्य, तिर्यञ्चों) में उत्पन्न नहीं होते जबकि सर्वार्थसिद्ध के देव तो भव्य-द्रव्यसिद्ध होते हैं, अर्थात् वे तो मनुष्य भव प्राप्त करके सिद्ध हो जाते हैं।
नरदेवों की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि वे मनुष्यों और तिर्यंचों को छोड़कर नैरयिकों एवं देवों से आकर उत्पन्न होते हैं।
कोई धर्मदेव तभी बन सकता है, जब वे चारित्र ( सर्वविरति ) ग्रहण करें। छठी नरक पृथ्वी (तमःप्रभा) से निकले हुए जीव मनुष्य भव प्राप्त तो कर सकते हैं, परन्तु चारित्र ग्रहण नहीं कर सकते तथा सप्तम नरक पृथ्वी ( तमस्तमःप्रभा), तेउकाय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमि, कर्मभूमि और अन्तरद्वीप मनुष्यों और तिर्यञ्चों से निकले हुए जीव तो मनुष्य भव ही प्राप्त नहीं करते, तब तो धर्मदेव ( चारित्र युक्त साधक) बनने की बात दूर रही । इसलिए इनसे धर्मदेवों की उत्पत्ति का निषेध किया गया है। देवाधिदेवों की उत्पत्ति के बारे में कहा गया कि प्रथम तीन नरक पृथ्वियों से निकले हुए जीव ही देवाधिदेव ( तीर्थंकर) पद प्राप्त कर सकते हैं, आगे की चार नरक पृथ्वियों से नहीं। इसके अलावा सभी वैमानिक देवों से निकले हुए जीव भी देवाधिदेव पद प्राप्त कर सकते हैं।
प्रज्ञापना सूत्र के छठे व्युत्क्रान्ति पद में जैसे भवनपति देवों की उत्पत्ति के बारे में कथन किया गया है वैसा ही कथन यहाँ भी भावदेवों की उत्पत्ति के बारे में किया गया है। प्रज्ञापना सूत्र में भवनपति सम्बन्धी उपपात का अतिदेश किया गया है। इसका कारण यह है कि बहुत से स्थानों से आकर जीव भवनवासी देव के रूप में उत्पन्न होते हैं जिनमें से असंज्ञी जीव भी आकर उत्पन्न होते हैं । Elaboration —In aforesaid five statements (7-11) the birth of aforesaid five kinds of gods has been explained.
Jivas (souls/living beings) come from all genuses except those from the inhabitants of land of inaction (Akarmabhumi) and middle islands (antardveep) having life-span of innumerable years as well as from Sarvarthasiddha Vimaan, and get reborn as Bhavya-dravyadevs. In other words they come from among all living beings from infernal beings... and so on up to divine beings of Aparajit Vimaan, the fourth Anuttar Vimaan. The reason for this is that the inhabitants of land of inaction (Akarmabhumi) and middle islands ( antardveep) having life - span of
भगवती सूत्र (४)
(390)
Bhagavati Sutra ( 4 )
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