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[उ.] एवं चेव।
१८. [प्र.] भगवन्! क्या यह जीव तीन सौ अठारह प्रैवेयक विमानावासों में से प्रत्येक ॐ विमानावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् उत्पन्न हो चुका है?
[उ.] हाँ गौतम! पूर्ववत् (अनेक बार या अनन्त बार) उत्पन्न हो चुका है। .
18. [Q.] Bhante ! Has this jiva (soul/living being) been born earlier in each of the three hundred eighteen celestial vehicles of Graiveyak divine Si realms in earth-bodied form... and so on up to... plant-bodied and other forms?
[Ans.) Yes, Gautam ! Like aforesaid many times or infinite times.
१९-१. [प्र.] अयं णं भंते ! जीवे पंचसु अणुत्तरविमाणेसु एगमेगंसि अणुत्तरविमाणंसि । पुढवि.।
[उ.] तहेव जाव अणंतखुत्तो, नो चेव णं देवत्ताए वा, देवित्ताए वा।
१९-१. [प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव पाँच अनुत्तर विमानों में से प्रत्येक अनुत्तर विमान में, पृथ्वीकायिक रूप में यावत् उत्पन्न हो चुका है?
[उ.] हाँ, किन्तु वहाँ यावत् अनन्त बार देवरूप अथवा देवी रूप में उत्पन्न नहीं हुआ।
19-1. [Q.] Bhante ! Has this jiva (soul/living being) been born earlier in each of the five celestial vehicles of Anuttar divine realms in earth-bodied 3 form... and so on up to... plant-bodied and other forms?
[Ans.] Yes, Gautam ! But here it has not been born infinite times in the form of god and goddess.
१९-२. एवं सव्वजीवा वि। [१९-२] इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में जानना चाहिए। 19-2. [Q.] The same is true for all jivas (souls/living beings).
विवेचन-एक जीव तथा सर्व जीवों की अपेक्षा से रत्नप्रभा पृथ्वी के नरकावासों से लेकर ॥ अनुत्तर विमान के विमानावासों तक में एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के समग्र रूपों में उत्पत्ति की ॐ प्ररूपणा की गई है। सूत्र नं. (११-१) में पृथ्वीकायिक आवासों की संख्या असंख्यात लाख कही गई
है। ऐसा बताने का एक मात्र कारण उनकी बहुलता बताना है जिस कारण शतसहस्र (लाख) शब्द है ॐ प्रयुक्त किया गया है। सूत्र नं. (१६-१) से आगे के सूत्रों में सनत्कुमारादि देवलोक के विमानों में जो भी म | भगवती सूत्र (४)
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Bhagavati Sutra (4)| 555545454545454599999994545455555555555555558