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________________ है [उ.] गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे पढमजोव्वणुट्ठाण-बलत्थे पढमजोव्वणुॐ द्वाणबलत्थाए भारियाए सद्धिं अचिरवत्तविवाहकज्जे अत्थगवेसणयाए सोलसवास विष्यवासिए, से णं तओ लद्धटे कयकज्जे अणहसमग्गे पुणरवि नियगं गिहं हव्वमागते . 5 बहाते कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए मणुण्णं थालिपागसुद्ध ॐ अट्ठारसवंजणाउलं भोयणं भुत्ते समाणे तंसि तारिसगंसि वासघरंसि; वण्णओ. महब्बले कुमारे (स. ११ उ. ११) जाव सयणोवयारकलिए ताए तारिसियाए भारियाए सिंगारागारचारुवेसाए जाव कलियाए अणुरत्ताए अविरत्ताए मणाणुकूलाए सद्धिं इढे सद्दे फरिसे जाव पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरेज्जा। ___[प्र.] से णं गोयमा! पुरिसे विओसमणकालसमयंसि केरिसयं सायासोक्खं पच्चणुब्भवमाणे विहरइ? ___ [उ.] ओरालं समणाउसो! तस्स णं गोयमा! पुरिसस्स कामभोएहिंतो वाणमंतराणं देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा म चेव कामभोगा। वाणमंतराणं देवाणं कामभोगेहितो असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं मदेवाणं एत्तो अणंतगुणविसिटुतरा चेव कामभोगा। असुरिंदवज्जियाणं भवणवासियाणं ॐ देवाणं कामभोगेहिंतो असुरकुमाराणं [इंदभूयाणं] देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा चेव ॐ कामभोगा। असुरकुमाराणं. देवाणं कामभोगेहितो गहगणनक्खत्त-तारारूवाणं जोइसियाणं # देवाणं एत्तो अणंतगुणविसिट्ठतरा चेव कामभोगा। गहगण-नक्खत्त जाव कामभोगेहितो ॐ चंदिम-सूरिया णं जोइसिंदाणं जोइसराईणं एत्तो अणंतगुणविसिद्रुतरा चेव कामभोगा। म चंदिम-सूरिया णं गोयमा ! जोइसिंदा जोइसरायाणो एरिसे कामभोगे पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव विहरइ। ॥ बारसमे सए : छट्ठओ उद्देसओ समत्तो॥ ८. [प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्कों के इन्द्र, ज्योतिष्कों के राजा चन्द्र और सूर्य किस प्रकार के म कामभोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं? 卐 [उ.] गौतम! जिस प्रकार प्रथम युवावस्था में प्रवेश हुए किसी बलिष्ठ पुरुष (युवक) ने, किसी यौवनावस्था में प्रविष्ट होती हुई किसी बलिष्ठ भार्या (युवती) के साथ नया (थोड़े दिन पहले) ही विवाह किया, और (विवाह के बाद वह पुरुष) अर्थोपार्जन करने के लिए सोलह वर्ष म तक विदेश में रहा। वहाँ से धनोपार्जन कर अपना कार्य सम्पन्न करके वह निर्विघ्न रूप से पुनः 555555555555555 रामभक) | बारहवाँशतक : छठा उद्देशक (355) Twelfth Shatak: Sixth Lesson |
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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