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Elaboration-Dharmaastikaaya, Adharmaastikaaya, Aakaashaasti. + kaaya, spiritual soul-complexions, Saakaaropayoga, Anaakaaropayoga, ;
time, and some of the substances, their space-points and modes, and right perception/faith to desires are all devoid of attributes of colour etc. because they all are formless.
है गर्भ में उत्पन्न हो रहे जीव में वर्णादि की प्ररूपणा ATTRIBUTES OF A SOUL IN WOMB
३६. [प्र.] जीवे णं भंते ! गब्भं वक्कममाणे कइवण्णं कइगंधं कइरसं कइफासं म परिणामं परिणमइ?
[उ.] गोयमा ! पंचवण्णं दुगंधं पंचरसं अट्ठफासं परिणामं परिणमइ।
३६. [प्र.] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआजीव, कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला होता है?
[उ.] गौतम! पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस और आठ स्पर्श वाले परिणाम से परिणत होता है।
36. [Q.] Bhante ! Of how many colours, smells, tastes and touches is a 5 jiva (soul/living being) in womb and to reborn ?
[Ans.] Gautam ! It gets born with manifestation of five colours, five $ tastes, two smells and eight touches.
कर्मों के कारण जीव का. विविध रूपों में परिणमन TRANSFORMATION OF JIVA IN VARIOUS FORMS DUE TO KARMAS
३७. [प्र. ] कम्मओ णं भंते ! जीवे, नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ, कम्मओ णं जए, नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ?
[उ.] हंता, गोयमा ! कम्मओ णं तं चेव जाव परिणमइ, नो अकम्मओ विभत्तिभावं परिणमइ। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति.।
॥ बारसमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो॥ १२-५॥ ३७. [प्र.] भगवन् ! क्या जीव कर्मों के कारण मनुष्य-तिर्यञ्च आदि विविध रूपों को प्राप्त होता है, कर्मों के बिना विविध रूपों को प्राप्त नहीं होता तथा क्या जगत् कर्मों से विविध रूपों को म प्राप्त होता है और बिना कर्मों के प्राप्त नहीं होता?
म | बारहवां शतक : पंचम उद्देशक
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Twelfth Shatak : Fifth Lesson