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प्राथमिक INTRODUCTION
अनगार,
दसमं सयं : दशम शतक DASHAMAM SHATAK (CHAPTER TEN)
आध्यात्मिक,
आदि
व्याख्या प्रज्ञप्ति के दसवें शतक में दिशा, कषाय भाव व अकषाय भाव देवों की आत्म-ऋद्धि, श्यामहस्ती, इन्द्रों की देवियाँ, सुधर्मा सभा व 28 अन्तर्द्वीपों विषयों से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर के चौंतीस उद्देशक हैं। इस पूरे शतक में मनुष्यों और देवों की भौतिक एवं दिव्य शक्तियों का निर्देशन किया गया है।
दसवें शतक की संग्रहणी गाथा COLLATIVE VERSE
१.
स्थित
In the tenth chapter of Vyakhya Prajnapti there are thirty four lessons having question-answers on various topics including directions, restrained homeless-ascetic in passion-ridden and passion-free states of mind, powers of divine beings, Shyamahasti, consorts of kings of gods, divine assemblies, फ and twenty eight middle islands (antardveeps). This chapter is fully devoted to the spiritual, physical and divine powers of human and divine beings.
दिसि १ संवुड अणगारे २ आयड्ढी ३ सामहत्थि ४ देवि ५ सभा ६ । उत्तर अंतरदीवा ७ - ३४ दसमम्मि सयम्मि चउत्तीसा ॥
संवृत
दसवें शतक के चौंतीस उद्देशक इस प्रकार हैं- (१) दिशा, (२) संवृत अनगार,
१.
(३) आत्म-ऋद्धि, (४) श्यामहस्ती, (५) देवी, (६) सभा और (७ से ३४ तक) उत्तरवर्ती अन्तद्वीप ।
दशम शतक : प्रथम उद्देशक
Elaboration (1) The first lesson explains cardinal and intermediate directions. (2) The second lesson contains details about restrained
(1)
1. The thirty four lessons of the tenth chapter are as follows - (1) Disha (The Directions), (2) Samvrit Anagar (Restrained Homeless-ascetic), (3) Atmariddhi (Inner Powers ), ( 4 ) Shyamahasti, (5) Devi ( Goddesses), (6) Sabha (Assembly), (7-34) Uttarvarti Antardveep (Northern Inner-islands). फ विवेचन - (१) प्रथम उद्देशक में दिशाओं के सम्बन्ध में निरूपण है । (२) द्वितीय उद्देशक में संवृत अनगार आदि के विषय में वर्णन है । (३) तृतीय उद्देशक में देवावासों को उल्लंघन करने में देवों की आत्म-ऋद्धि (स्वशक्ति) का कथन है । (४) चतुर्थ उद्देशक में श्रमण भगवान् महावीर के ' श्यामहस्ती' नामक शिष्य के प्रश्नों से सम्बन्धित कथन है । (५) पंचम उद्देशक में चमरेन्द्र आदि इन्द्रों की देवियों (अग्रमहिषियों) के सम्बन्ध में निरूपण है। (६) छठे उद्देशक में देवों की सुधर्मा सभा के विषय में प्रतिपादन है और (७-३४) से ३४वें उद्देशक में उत्तर दिशा के २८ अन्तद्वीपों के विषय में २८ उद्देशक हैं।
७वें
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Tenth Shatak: First Lesson
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