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________________ 845555555555555555555555558 म . [२६] इस प्रकार (सम्पूर्ण असुरकुमारों से लेकर) यावत् (सम्पूर्ण) वैमानिकों तक (अतीतकालीन एवं भविष्यकालीन पुद्गल-परिवर्तन) के विषय में करना चाहिए। 26. The same (about material transformations of past and future) ist true (from all Asur-kumars)... and so on up to... (all) Vaimanik (soul/living beings). २७. एवं वेउव्वियपोग्गलपरियट्टा वि। एवं जाव आणापाणुपोग्गलपरियट्टा जाव 卐 वेमाणियाणं। एवं एए पोहत्तिया सत्त चउवीसतिदंडगा। म . [२७] इस तरह (नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के) वैक्रिय पुद्गल-परिवर्तन के विषय ॐ में कहना चाहिए। इसी प्रकार (तैजस पुद्गल-परिवर्तन से लेकर) यावत् आन-प्राण पुद्गलम परिवर्तन तक की कहना चाहिए। . ___ इस तरह अलग-अलग सातों पुद्गल-परिवर्तनों के विषय में सात आलापक तथा समुच्चय म रूप से चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के विषय में चौबीस आलापक कहने चाहिए। 27. In the same way statements should be made about transmutable material transformations (in context of infernal beings to Vaimaniks)... and so on up to... Aan-praan pudgal parivartya (breath material transformations). Thus seven separate statements about seven kinds of \ material transformations should be stated. And twenty four sets of statements related to jivas (souls/living beings) in twenty four places of suffering (dandak). विवेचन-सूत्र नं. १८ से २७ तक नैरयिकादि जीवों से लेकर वैमानिक तक के जीवों के अतीतकालीन और अनागत कालीन, औदारिक आदि सात प्रकार के पुद्गल परिवर्तन के बारे में चर्चा की गई है। अब प्रश्न यह होता है कि प्रत्येक नैरयिकादि जीव के अतीतकालीन पुद्गल-परिवर्तन + अनन्त कैसे होते हैं? तो इसका उत्तर यह है कि अतीतकाल अनादि है और जीव भी अनादि है तथा ॐ अनादिकाल से अनन्त भवों तक भिन्न-भिन्न पुद्गल ग्रहण के कारण प्रत्येक नैरयिकादि जीव के म अतीतकाल सम्बन्धी औदारिकादि पुद्गल परिवर्तन भी अनन्त है। एक अभव्य जीव के तो भविष्यकाल में पुद्गल-परिवर्तन होते ही रहेंगे, परन्तु जो जीव नरक आदि गति से निकल कर मनुष्य भव पाकर सिद्धि प्राप्त कर लेगा, अथवा जो संख्यात या असंख्यात भवों में सिद्धि को प्राप्त करेगा, उसका पुद्गल-परिवर्तन नहीं होगा। लेकिन जिसका संसार परिभ्रमण अधिक होगा, वह एक अथवा अनेक पुद्गल-परिवर्तन करेगा, वैसे भी एक पुद्गल-परिवर्तन अनेक काल में पूरा होता है। भगवती सूत्र (४) (304) Bhagavati Sutra (4) & 5555555555555555555555555555
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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