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85555555555555555555555555555555555555 म [उ.] जयन्ती! जिस प्रकार सर्वाकाश की श्रेणी, जो अनादि, अनन्त (एकप्रदेशी होने के मसे) परित्त (परिमित) और (अन्य श्रेणियों द्वारा) परिवृत हैं, उसमें से प्रतिसमय एक-एक '
परमाणु-पुद्गल जितना खण्ड निकालते-निकालते अनन्त उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी तक ॐ निकाला जाए तो भी वह श्रेणी खाली नहीं होगी। ठीक इसी प्रकार, हे जयन्ती! ऐसा कहा में जाता है कि सब भवसिद्धिक जीवों के सिद्ध होने पर भी लोक भवसिद्धिक जीवों से रहित ॐ नहीं होगा। 41 17-2. (Q.) Bhante ! Why is it said that even when all bhavasiddhik
souls will gain liberation, the universe (Lok) will still not be devoid of 41 bhavasiddhik (destined to gain liberation) souls ? 5 [Ans.] Jayanti ! A row of space-points in whole space is endless
and infinite (being constituted of single space-points) but limited and surrounded (by other rows). If we take out a portion of the size of an ultimate particle every Samaya (the indivisible fraction of time) the row will not be extinct even after the passage of infinite progressive and regressive cycles of time. For the same reason, O Jayanti ! It is
said that even when all bhavasiddhik souls will gain liberation, the 5 universe (Lok) will still not be devoid of bhavasiddhik souls.
विवेचन-जयन्ती श्रमणोपासिका ने प्रभु महावीर से भवसिद्धिक जीव के विषय में तीन म प्रश्न पूछे, जिनका उत्तर बताते हुए प्रभु ने कहा-जो भव्य हैं, मुक्ति के योग्य हैं, वे
भवसिद्धिक कहलाते हैं। समस्त भवसिद्धिक जीव एक न एक दिन अवश्य सिद्धि प्राप्त करेंगे। ऊ अतः भवसिद्धिक जीवों की भवसिद्धिकता स्वाभाविक है, पारिणामिक नहीं। ऐसा नहीं होता कि वे
पहले अभवसिद्धिक थे किन्तु बाद में पर्याय-परिवर्तन होने के कारण भवसिद्धिक हो गए। जैसे ॐ पुद्गल में मूर्तत्व धर्म स्वाभाविक है, वैसे ही भवसिद्धिक जीवों में भवसिद्धिकता स्वाभाविक है।
आगे जयन्ती श्रमणोपासिका ने प्रभु से प्रश्न पूछा-'यदि सभी भवसिद्धिक जीव सिद्ध हो म जायेंगे तो संसार भवसिद्धिक जीवों से खाली हो जाएगा? तब भगवान महावीर ने इस प्रश्न का + उत्तर देते हुए कहा-जितना भी भविष्यत्काल है, वह सब कभी न कभी वर्तमान हो जाएगा, तो
क्या कभी ऐसा समय 'आ सकता है जब संसार भविष्यत्काल से खाली हो जाए? ऐसा होना जैसे म असम्भव है, वैसे ही लोक का भवसिद्धिक जीवों से खाली होना असम्भव है। म इसी तरह समग्र आकाश की श्रेणी अनादि-अनन्त है, उसमें से एक-एक परमाणु जितना
खण्ड प्रति समय निकाला जाए तो अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल व्यतीत हो जाने पर भी म आकाशश्रेणी खाली नहीं होगी, ठीक इसी प्रकार भवसिद्धिक जीवों के मोक्ष चले जाते रहने पर
भी यह लोक भवसिद्धिक जीवों से खाली नहीं होगा।
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बारहवाँशतक : द्वितीय उद्देशक
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Twelfth Shatak : Second Lesson
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