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45555555555555555555555555555555555555 + आलभियं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ, अ. २ ॐ तिदंड-कुंडियं च जहा खंदओ (स. २ उ. १) जाव पव्वइओ। सेसं जहा सिवस्स जाव # अव्वाबाहं सोक्खं अणुभवंति सासयं सिद्धा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति. ॥ एक्कारसमे सए बारसमो उद्देसो समत्तो॥११-१२॥
॥ एक्कारसमं सयं समत्तं॥ ___ [२४] तत्पश्चात् आलभिका नगरी में शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर (बहुत-से लोगों से यावत् मुद्गल परिव्राजक ने भगवान द्वारा दिया अपनी मान्यता के मिथ्या होने का निर्णय सुनकर) इत्यादि सब वर्णन (श. ११, उ. ९ के अनुसार) शिव राजर्षि के समान जानना चाहिए।
[अरिहंत, तीर्थंकर, सर्वज्ञ-सर्वदर्शी] यावत् सर्व दुःखों से रहित (होकर विचरते) हैं; [उनके पास जाने का विचार कर] विभंगज्ञान से रहित होकर मुद्गल परिव्राजक ने अपने त्रिदण्ड, फ़ कुण्डिका आदि उपकरण लिये, यावत् भगवाँ वस्त्र पहने और वे आलभिका नगरी के मध्य में में होकर निकले, [जहाँ भगवान विराजमान थे, वहाँ आए] यावत् उनकी पर्युपासना की। है भगवान द्वारा अपनी शंका का समाधान हो जाने पर मुद्गल परिव्राजक भी यावत् उत्तर-पूर्व म दिशा में गए और स्कन्दक की तरह (श. २, उ. १, सू. ३४ के अनुसार) त्रिदण्ड, कुण्डिका एवं है भगवाँ वस्त्र छोड़कर यावत् प्रव्रजित हो गए। इसके बाद का वर्णन शिव राजर्षि की तरह जानना ॐ चाहिए; [अर्थात् मुद्गल मुनि शिव राजर्षि के समान आराधक होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुए।] मी यावत् वे सिद्ध, अव्याबाध, शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं।
___'हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन! यह इसी प्रकार है', ऐसा कहकर गौतम स्वामी है यावत् विचरण करने लगे।
॥ ग्यारहवाँ शतक : बारहवाँ उद्देशक समाप्त॥
॥ ग्यारहवाँ शतक सम्पूर्ण॥ 24. On crossings... and so on up to... highways of Aalabhika city masses started talking among themselves. The following description
should follow that mentioned about Saint-king Shiva in Chapter-11, 4 Lesson-9). ... and so on up to... Arihant, Tirthankar, the initiator of
religion,... and so on up to... (being free of the pervert knowledge and
with thoughts of going to him) Mudgal Parivrajak collected his trident, 4i bowls and other equipment, put on the saffron dress... and so on up t
passed through the center of Aalabhika city (came near Shraman Bhagavan Mahavir)... and so on up to... commenced his worship.
| ग्यारहवाँशतक : ग्यारहवाँ उद्देशक
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Eleventh Shatak: Twelfth Lesson |
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