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________________ 845555555555555555555555555555555555558 म १४ [उ.] गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होगा, यावत् सभी दु:खों का अन्त करेगा। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन्! यह इसी प्रकार है!, ऐसा कहकर भगवान् गौतम, यावत् अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। 14. [Q.] Bhante ! After ending the life-span, stay and birth in that divine realm... and so on up to... where will that Rishibhadraputra god ज: be reborn ? [Ans.] Gautam ! He will become Siddha (perfect one) in the Mahavideha area... and so on up to... end all miseries. “Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so.” With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. म १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ आलभियाओ नयरीओ संखवणाओ में चेइयाओ पडिनिक्खमइ, प. २ बहिया जणवयविहारं विहरइ। प [१५] तत्पश्चात् किसी समय श्रमण भगवान् महावीर भी आलभिका नगरी के शंखवन ॐ उद्यान से निकल कर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। 卐 15. Then at some point of time Shraman Bhagavan Mahavir left Shankhavan garden in Aalabhika city and commenced his itinerant way in other populated areas. मुद्गल परिव्राजक MUDGAL PARIVRAJAK में मुद्गल परिव्राजक को विभंगज्ञान प्राप्ति MUDGAL PARIVRAJAK GAINS VIBHANGA JNANA म १६. तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नाम नयरी होत्था। वण्णओ। तत्थ णं ॐ संखवणे नामं चेइए होत्था। वण्णओ। तस्स णं संखवणस्स चेइयस्स अदूरसामंते मोग्गले म नाम परिव्वायए परिवसइ रिजुव्वेद-यजुव्वेद जाव नयेसु सुपरिनिट्ठिए छटुं छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ आव आयावेमाणे विहरइ। (किसी-किसी प्रति में 'मोग्गले' (मुद्गल) है के स्थान पर पोग्गले (पोद्गल) दिया गया है। जबकि वैदिक साहित्य की दृष्टि से देखा जाए तो 'मुद्गल' 卐 शब्द उचित प्रतीत होता है।) ॐ [१६] उस काल और उस समय में आलभिका नाम की नगरी थी। (उसका वर्णन औपपातिक सत्र के नगर वर्णन के अनुसार समझना चाहिए।) वहाँ शंखवन नामक उद्यान था। ॐ (उसका भी वर्णन औपपातिक सूत्र में बताए उद्यान वर्णन के अनुसार जानना चाहिए।) उस शंखवन उद्यान के न तो अतिदूर और न ही अतिनिकट अर्थात् कुछ दूर मुद्गल (पुद्गल) नामक भगवती सूत्र (४) (216) Bhagavati Sutra (4) 5555555555555555555555555555555558
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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