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ध्रुवराहु और पर्वराहु का स्वरूप तथा चन्द्र को पूर्वोक्त पाँच प्रकार के देवों की उत्पत्ति का आवृत-अनावृत करने का कार्यकलाप 350 सकारण निरूपण चन्द्र को शशी (सश्री) और सूर्य को
पंचविध देवों की जघन आदित्य कहे जाने का कारण
352 स्थिति का निरूपण चन्द्रमा और सूर्य की अग्रमहिषियों
पंचविध देवों की वैक्रिय शक्ति का निरूपण ( पटरानियों ) का वर्णन
354 पंचविध देवों की उद्वर्त्तना-प्ररूपणा चन्द्र और सूर्य के कामभोगों से सुखानुभव पंचविध देवों की स्व-स्वरूप में संस्थिति का निरूपण
354 प्ररूपणा बारहवां शतक : सप्तम उद्देशक :
पंचविध देवों के अन्तरकाल की प्ररूपणा 401 लोक का परिमाण
पंचविध देवों का अल्प-बहुत्व 359-374
भवनवासी आदि भावदेवों का अल्प-बहुत्व 407 लोक के परिमाण की प्ररूपणा
359 बकरियों के बाड़े के दृष्टान्त द्वारा लोक में बारहवां शतक : दसवाँ उद्देशक : परमाणु मात्र प्रदेश में जीव के जन्म-मरण आत्मा
410-448 की प्ररूपणा
360
आत्मा के आठ भेदों की प्ररूपणा 410 नरकादि चौबीस दण्डकों की आवास संख्या
द्रव्यात्मा आदि आठों आत्मभेदों का परस्पर का अतिदेशपूर्वक निरूपण
363
सहभाव एवं असहभाव-निरूपण 412 एकजीव अथवा सर्वजीवों के चौबीस दण्डकवर्ती आवासों में विविध रूपों में तेरहवां शतक : प्रथम उद्देशक : अनन्त बार उत्पन्न होने की प्ररूपणा 363 नरक पृथ्वियाँ
449-481 एक जीव अथवा सर्वजीवों के मातादि, शत्रुदि, प्राथमिक
449 राजादि और दासादि के रूप में अनन्त बार
तेरहवें शतक के संग्रहणी गाथा
451 उत्पन्न होने की प्ररूपणा
371
नरक पृथ्वियों का वर्णन तथा रत्नप्रभा नरक . बारहवां शतक : अष्टम उद्देशक :
पृथ्वी के नरकावासों की संख्या और उनका
_____375-380 विस्तार नाग, मणि, वृक्षादि में महर्द्धिक देव की
रत्नप्रभा के संख्येय (संख्यात) विस्तृत उत्पत्ति एवं प्रभाव की चर्चा
375
नरकावासों में विविध विशेषण-विशिष्ट शीलादि से रहित वानरादि का नरकगामित्त्व
• नैरयिक जीवों की उत्पत्ति से सम्बन्धित निरूपण
उनचालीस प्रश्नोत्तर 378
रत्नप्रभा के संख्येय (संख्यात) विस्तृत बारहवां शतक : नौंवाँ उद्देशक :
नरकावासों से उद्वर्त्तना सम्बन्धी प्रश्नोत्तर 459
__381-409 रत्नप्रभा पृथ्वी के संख्यात विस्तृत नरकावासों भव्यद्रव्यादि पंचविध देवों के स्वरूप का
में नैरयिक जीवों की संख्या से लेकर चरमनिरूपण
381 अचरम की संख्या से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 461
नाग
देव
(18)
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