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________________ स्वप्नफल सुनकर रानी प्रभावती द्वारा गर्भ की रक्षा 5 THE QUEEN CARES FOR CHILD IN HER WOMB ३४. तए णं सा पभावई देवी बलस्स रण्णो अंतियं एयमढें सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु. करयल जाव एवं वयासी-एयमेयं देवाणुप्पिया ! जाव तं सुविणं सम्म पडिच्छइ, तं. पडि. २ बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी नाणामणि-रयणभत्ति चित्त जाव अब्भुट्टेइ, + अ. २ अतुरियमचवल जाव गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ, ते. उ. २ सयं भवणमणुपविट्ठा। [३४] बल राजा से उपर्युक्त (स्वप्न-फलरूप) अर्थ सुनकर एवं उस पर विचार करके प्रभावती देवी हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। यावत् हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोली-देवानुप्रिय! जैसा आप कहते हैं, वैसा ही है। यावत् इस प्रकार कहकर उसने स्वप्न के अर्थ को भलीभांति स्वीकार किया और बल राजा की अनुमति प्राप्त कर वह अनेक प्रकार के मणिरत्नों की कारीगरी से निर्मित उस भद्रासन से यावत् उठी; और फिर शीघ्रता तथा चपलता से रहित यावत् हंसगति से जहाँ अपना वासभवन था, वहाँ आकर अपने भवन में प्रविष्ट हुई। 34. Hearing and understanding the statement of King Bal, the queen was pleased and contented. Joining her palms, she said—“O beloved of gods! It is, indeed, as you say.” She accepted the dream and its interpretation. Then she took leave of King Bal, got up from the seat, ornamented with gems and beads, and returned to her chamber walking slowly like a swan. ३५. तए णं सा पभावई देवी पहाया कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकारविभूसिया तं गब्भं नाइसीऐहिं नाइउण्हेहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहि उउभयमाणसुहेहिं भोयण-च्छायण-गंध-मल्लेहिं जं तस्स गब्भस्स हियं मियं पत्थं गब्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं पइरिक्कसुहाए मणाणुकूलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला विणीयदोहला ववगयरोग-सोग-मोह-भय-परित्तासा तं गब्भं सुहंसुहेणं है परिवहइ। __ [३५] तत्पश्चात् प्रभावती देवी ने स्नान करके शान्तिकर्म यावत् समस्त अलंकारों से ॐ विभूषित हुई। इसके बाद वह अपने गर्भ का पालन करने लगी। वह न तो अत्यन्त शीतल (ठंडे) और न अत्यन्त उष्ण, न अत्यन्त तिक्त (तीखे) और न अत्यन्त कड़वे, न अत्यन्त कसैले, न म अत्यन्त खट्टे और न अत्यन्त मीठे पदार्थ खाती थी परन्तु ऋतु योग्य सुखकारक भोजन आच्छादन के (आवास या वस्त्र), गन्ध एवं माला का सेवन करती थी। गर्भ के लिए जो भी हित, परिमित, | भगवती सूत्र (४) (188) Bhagavati Sutra (4)
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
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