SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * 5 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 9 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 50 8 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 955555555555 卐 विवेचन - तीर्थंकर या चक्रवर्ती हैं। उनमें से बारहवें स्वप्न में दो शब्द दिये गये हैं- विमान और भवन । इसका तात्पर्य यह है कि जा जाव देवलोक से आकर तीर्थंकर के रूप में जन्म लेता है, उसकी माता स्वप्न में 'विमान' देखती है और जो जीव नरक से आकर तीर्थंकर के रूप में जन्म लेता है, उसकी माता स्वप्न में 'भवन' देखती है। जब माता के गर्भ में आते हैं, राजा द्वारा स्वप्नपाठकों का सत्कार एवं रानी को स्वप्नफल बताना FELICITATION OF DREAM-DIVINERS तब उनकी माता (186) चौदह महास्वप्न Elaboration--When an Arihant or a Chakravarti is conceived he mother ses fourteen great dreams. The twelfth dream has two altermann words--Vimaan and Bhavan. This indicates that the mother in whos womb a soul descends from divine realm to be born a Tirthankar 500- 3 Vimaan celestial vehicle in her dream. And the mother in whose want a soul ascends from infernal realm to be born as Tirthankar sees a Bhavan abode) in her dream. देखती ३३. तए णं से बले राया सुविणलक्खणपाढगाणं अंतिए एयमट्ठे सांच्चा निसर हट्ट करयल जाव कट्टु ते सुविणलक्खणपाढगे एवं वयासी- एवमेयं देवापिः जाव से जयंतुभे वयह', त्ति कट्टु तं सुविणं सम्मं पडिच्छट्ट, तंप सविणलक्खपाट विलेणं असण- पाण- खाइम - साइम- पुप्फ-वत्थ- गंधमल्लालंकारेण सकारे सम्मा " स. २ विडलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, वि. द. २ पडिविसज्जेड, पडि २ सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, सी. अ. २ जेणेव पभावई देवी तेणेव उवागच्छइ नं. ३ २ पभावई देखि ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी एवं खलु देवपित सुविणसत्यंसि बायालीसं सुविणा, तीसं महासुविणा, बावत्तरिं सव्वमुविणा दिला थ णं देवाणुप्पिए ! तित्थयरमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा, तं चेव जाव अन्नयरं एवं महामुनिर्ण पासित्ताणं पडिबुज्झति । इमे य णं तुमे देवाणुप्पिए! एगे महासुविणे दिट्ठे । तं ओराले पण तुमे देवी! सुविदिट्ठे जाव रज्जवई राया भविस्सइ अणगारे वा भावियप्पा, तं ओराने तुमे देवी! सुविदिट्ठे" जाव दिट्ठे त्ति कट्टु पभावई देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव दाच्च पि तच्च पि अणुबूहइ । [३३] इसके पश्चात् स्वप्नलक्षण- पाठकों से इस ( उपर्युक्त) स्वप्नफल को सुनकर एवं हृदय में अवधारण कर बल राजा अत्यन्त प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने हाथ जोड़कर यावत् उन स्वप्नलक्षण- पाठकों से इस प्रकार कहा - "हे देवानुप्रियो ! जैसा आपने स्वप्नफल बताया, यावत् वह उसी प्रकार है।" इस प्रकार कहकर स्वप्न का अर्थ सम्यक् प्रकार से स्वीकार किया। इसके बाद उन स्वप्नलक्षण-पाठकों को विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गन्ध, माला और अलंकारों से सत्कारित किया, सम्मानित किया; जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया एवं सबको विदा किया। भगवती सूत्र (४) Bhagavati Sutra ( 4 ) फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ
SR No.002493
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2013
Total Pages618
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy