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assembly hall cleaned, anointed and sprinkled with good fragrant water. Decorate it with enchanting, fragrant and multicoloured flowers. Burn a 4 variety of incenses, including Black Aguru and Kundaruk to make it redolent and pleasant. ... and so on up to... Turn it into a chamber of perfumes. After that, place a throne there. Do all this and report back.” ।
२७. तए णं ते कोडं बिय. जाव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं म जाव पच्चप्पिणंति।
[२७] यह सुनकर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने बल राजा का आदेश शिरोधार्य किया और शीघ्र ही विशेष रूप से बाहर की उपस्थानशाला को स्वच्छ, शुद्ध, सुगन्धित किया इस प्रकार आदेशानुसार सब कार्य करके राजा से निवेदन किया।
27. Hearing the king's order they happily left and soon cleaned, decorated and perfumed the outer assembly. After completing the entrusted work they returned and informed the king. बल राजा द्वारा स्वप्नपाठकों को आमंत्रण KING INVITES DREAM DIVINERS
२८. तए णं से वले राया पच्चूसकालसमयंसि सयणिज्जाओ समुढेइ, स. स. २ पायपीढाओ पच्चोरुभइ, प. २ जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, ते. उ. २ अट्टणसालं ॥ मी अणुपविसइ जहा उववाइए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे जाव ससिव्व पियदंसणे
नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, म. प. २ जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव ॐ उवागच्छइ, ते. उ. २ सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ, नि. २ अप्पणो उत्तरपुरस्थिमे म दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई सेयवत्थपच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थगकयमंगलोवयाराई रयावेइ, रया. मी ॐ २ अप्पणो अदूरसामंते नाणामणिरयणमंडियं अहियपेच्छणिज्जं महग्घवरपट्टणुग्गयं भी सहपट्टबहुभत्तिसयचित्तताणं ईहामियउसभ जाव भत्तिचित्तं अभितरियं जवणियं अंछावेइ,
अ. २ नाणामणि-रयणभत्तिचित्तं अत्थरय-मध्यमसूरगोत्थगं सेयवत्थपच्चुत्थुयं अंगसुहफासयुं + सुमउयं पभावईए देवीए भद्दासणं रयावेइ, र. २ कोथुवियपुरिसे सद्दावेइ, को. स. २ एवं ॐ वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अलैंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह।
[२८] तदन्तर बल राजा प्रात:काल के समय अपनी शय्या से उठे और पादपीठ से नीचे + उतरे। फिर वे जहाँ व्यायामशाला थी, वहाँ गए। व्यायामशाला में प्रवेश किया। व्यायामशाला
तथा स्नानगृह के कार्य का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् चन्द्रमा के + समान प्रिय-दर्शन बन कर वह राजा, स्नानगृह से निकले और बाहर की उपस्थानशाला में आकर के सिंहासन पर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठ गये। फिर अपने से उत्तरपूर्व दिशा में (अपनी | भगवती सूत्र (४) , (180)
Bhagavati Sutra (4)| 89555555555555555555555555555555598