________________
855555555555555555555555))
golden urns... and so on up to... one hundred eight earthen urns. After that his body was wiped dry with soft and fragrant cloth and smeared with paste of Goshirsh sandal-wood. ... and so on up to... embellished with ornaments like Kalpavriksha (divine wish-fulfilling tree) as mentioned about Jamali. Then everyone joined palms, congratulated prince Shivabhadra with hails of victory, blessed him in adorable (isht), lovable (kaant) and endearing words ... and so on up to ... and said, May you live long and enjoy being the lord of Hastinapur and many other villages, settlements, cities, kingdoms and state along with your family and friends.' Saying all this they once again greeted him with us hails of victory.
१०. तए णं से सिवभद्द कुमारे राया जाए महया हिमवंत. वण्णओ जाव विहरइ।
[१०] उसके बाद वह शिवभद्र कुमार राजा बन गया। वह महाहिमवान् पर्वत के समान है राजाओं में प्रधान होकर विचरण करने लगा। यहाँ शिवभद्र राजा का वर्णन समझना चाहिए
10. Now prince Shivabhadra became the king. Like the great Himalaya mountain he soon became leader of kings. Description (of king Shivabhadra). शिव राजर्षि द्वारा दिशाप्रोक्षकतापस-प्रव्रज्याग्रहण SAINT-KING SHIVA INITIATED AS DISHAPROKSHIK HERMIT
११. तए णं से सिवे राया अन्नया कयाइं सोभणंसि तिहि-करण-नक्खत्तदिवस-मुहुत्तसि विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता 卐 मित्त-नाइ-नियग-सयण जाव परिजणं रायाणो य खत्तिया य आमंतेइ, आमतेत्ता तओ
पच्छा पहाए जाव सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ卐 नियग-सयण जाव परिजणेणं राएहि य खत्तिएहि य सद्धिं विउलं असण-पाण-खाइम-साइमं ॥
एवं जहा तामली जाव सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारे. सक्कारित्ता तं मित्त-नाइ जाव 卐 परिजणं रायाणो य खत्तिए य सिवभदं च रायाणं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सुबहु ,
लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं जाव भंडगं गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति तंज चेव जाव तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए। पव्वइए वि य णं
समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे जावज्जीवाए छठें तं चेव जावक + अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अय. अभि. २ पढमं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
[११] तदनन्तर किसी समय शिव राजा (भूतपूर्व हस्तिनापुर नृप) ने प्रशस्त तिथि, करण, नक्षत्र, दिवस और शुभ मुहूर्त में विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करवाया और की ॐ मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन, परिजन, राजाओं एवं क्षत्रियों आदि को आमंत्रित किया। स्वयं स्नान आदि के
| भगवती सूत्र (४)
(118)
Bhagavati Sutra (4)