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अट्ठमो उद्देसओ : नलिण अष्टम उद्देशक : नलिन (जीव विषयक) ASHTAM UDDESHAK (EIGHTH LESSON) :
____NALIN (LIFE IN NALIN)
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१ [प्र.] नलिणे णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे? [उ.] एवं चेव निरवसेसं जाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति.।
॥ एक्कारसमे सए अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥ १ [प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाला नलिन (कमल-विशेष) एक जीव वाला होता है, या अनेक जीव वाला?
. [उ.] गौतम! इसका समग्र वर्णन उत्पल उद्देशक के समान क ना चाहिए और सभी जीव ॐ अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना चाहिए।
___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है! हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।' इस प्रकार कहकर गौतम । स्वामी यावत् विचरण करते हैं।
॥ ग्यारहवाँ शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त॥ 1. [Q.] Bhante ! Does a Nalin (a kind of lotus) with one petal have one soul (jiva) or many ?
Ans.] Gautam ! What has been mentioned about Utpal in the first lesson should be repeated here fully up to 'they (beings etc.) have been born many times, may be infinite times in the aforesaid forms.
“Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so.” With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन-प्रथम उद्देशक 'उत्पल' से आठवें 'नलिन' उद्देशक तक उत्पल आदि आठ वनस्पतिकायिक जीवों का ३२ द्वार के माध्यम से वर्णन किया गया है। पारस्परिक अंतर को बताने के लिये तीन गाथाएँ वृत्तिकार ने बतायी हैं। यथा
सालंमि धणुपुहत्तं होइ पलासे य गाउयपुहत्तं। जोयणसहस्समहियं अवसेसाणं तु छण्हंपि॥१॥ कुम्भीए नालियाए वासपुहत्तं ठिई उ बोद्धव्वा। दसवाससहस्साई अवसेसाणं तु छण्हं पि॥२॥
जमक
ग्यारहवाँशतक: अष्टम उद्देशक
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Eleventh Shatak : Eighth Lesson