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सत्तमो उद्देसओ : कण्णीय सप्तम उद्देशक : कर्णिका (जीव विषयक) SHASHTAM UDDESHAK (SEVENTH LESSON) :
KARNIKA (LIFE IN KARNIKA)
१ [प्र.] कण्णिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे? .. [उ.] एवं चेव निरवसेसं भाणियव्वं । सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति.।
॥ एक्कारसमे सए सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥ १ [प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाली कर्णिका (वनस्पति विशेष) एक जीव वाली है या अनेक जीव वाली है? __ [उ.] गौतम! इसका समग्र वर्णन उत्पल उद्देशक के समान समझना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है! हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।' इस प्रकार कहकर गौतम ॥ म स्वामी यावत् विचरण करते हैं।
॥ ग्यारहवाँ शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त॥ 卐 1. [Q.] Bhante ! Does a Karnika (a kind of plant) with one petal/leaf have one soul (jiva) or many ?
Ans.] Gautam! What has been mentioned about Utpal in the first lesson should be repeated here fully. ॐ “Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so.” With these words...
and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. . END OF THE SEVENTH LESSON OF THE ELEVENTH CHAPTER •
भगवन्नी मूत्र (४)
(108)
Bhagavati Sutra (4)