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________________ (8) To squeeze fingers or to twist them. (Modan) To remove dirt from the body while sitting, to scratch the body unnecessarily striking or without discrimination. (10) To sit in a sad position (Vim-asan) (11) To sleep or to doze during Samayik (12) To get the body massaged or pressed during Samayik While doing Samayik, one should ensure that no such faults is committed. ssssssssssssssssssssssssssssಣಿಗಳ सामायिक का फल किं तिव्वेण तवेणं किं च जवेणं किं चरित्तेणं। समयाइ विण मुक्खो, न हु हुओ कहवि नहु होइ॥ समतारूप सामायिक के अभाव में कितने ही बड़े-बड़े तप किए जाएं, कितने ही जप किए जाएं और कितने ही उत्कृष्ट चारित्र का पालन किया जाए, उनका बहुत मूल्य नहीं है। क्योंकि सामायिक की साधना के बिना मुक्ति संभव नहीं है। जे केवि गया मोक्खं, जे वि य गच्छन्ति जे गमिस्संति। ते सव्वे सामाइय पभावेण मुणेयव्वं॥ __ अतीत में जितनी भी आत्माएं मोक्ष में गई हैं, वर्तमान में जा रही हैं और भविष्य में जाएंगी, सभी के पीछे सामायिक का प्रभाव ही मूल कारण है। अर्थात् सामायिक ही वह मूल हेतु है जिसकी साधना से मुक्ति संभव होती है। दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवण्णस्स खंडियं एगो। इयरो पुण सामाइयं, न पहुप्पहो तस्स कोई॥ एक व्यक्ति एक लाख वर्ष तक प्रतिदिनं लाख-लाख स्वर्ण खंडियों (बीस मन की एक खण्डी होती है) का दान करता है और दूसरा व्यक्ति एक सामायिक करता है। ऐसे महादान दाता से सामायिक करने वाले का पुण्य अधिक होता है। (दान से स्वर्ग आदि की प्राप्ति होती है जबकि सामायिक से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मोक्ष के सुख की तुलना में स्वर्ग का सुख नगण्य होता है, उसके लक्षांश भाग की भी बराबरी नहीं कर सकता।) ___उपरोक्त गाथाओं से स्पष्ट है कि सामायिक से बड़ी अन्य कोई साधना नहीं है। सामायिक ही मूल साधना है। जितनी भी साधनाएं हैं वे सभी सामायिक के धरातल पर ही पुष्पित-पल्लवित Lastakestasksksksksksksdessesksksks ksksksksksksksksiretresseskskskskskskskskskskskskskskskskskatesakskskskskskskskskeles परिशिष्ट // 272 // Shravak Avashyak Sutra wapapapapaparpaperpasasaraparamparagrapaparmagarmagarmagarmagarmaga
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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