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ಬೆಳಣಿಕರ್ಣಿಣಿಗಳಾಗಬೇಳೆಕಳಶಶ.
सामायिक के लिए केवलियों ने अड़तालीस मिनट का समय निर्धारित किया है। अड़तालीस मिनट तक व्यक्ति समभाव में सहज भाव से स्थिर रह सकता है। सामायिक की सतत सुचारू साधना की जाए तो समभाव में स्थिरीकरण का यह समय शनै-शनै बढ़ता रहता है। सतत साधना से, एक क्षण आता है जब विभाव पूर्णतः समाप्त हो जाता है। समभाव शाश्वत रूप से आत्मा में प्रतिष्ठित हो जाता है। उस अवस्था में आत्मा के ज्ञान, दर्शन, एवं आनंद रूप स्वभाव का पूर्ण प्रगटीकरण होता है। उसी अवस्था में कैवल्य घटित होता है। आत्मा में परमात्मा का अवतरण हो जाता है। ___सामायिक के अनेक भेदोपभेद हैं। सूक्ष्म भेदोपभेद के विश्लेषण में न जाते हुए, मुख्य रूप से दो भेदों का अनिवार्यरूपेण ज्ञान व्यक्ति के लिए आवश्यक है। वे दो भेद हैं-द्रव्य सामायिक एवं भाव सामायिक। द्रव्य सामायिक से तात्पर्य है-आगम-कथित सामायिक में प्रवेश, सामायिक में करणीय एवं सामायिक की समाप्ति की विधियों का ज्ञान होना। भाव सामायिक से तात्पर्य है-मन, वचन एवं काय से समताभाव में स्थिर हो जाना। भाव सामायिक की आराधना ही व्यक्ति का प्रमुख लक्ष्य है। लेकिन द्रव्य सामायिक के बिना भाव सामायिक की सिद्धि अरबों में से किसी एक आत्मा को ही प्राप्त होती है।
PROCEDURE OF SAMAYIK AND 32 SHORT COMINGS
In different religious traditions, various methods of paying obeisence are prevalent. In many such traditions, the hymns are recited in order to please the respective Lords (Bhagwan), Worldly pleasures wealth and the like are sought in these prayers to the respected bhagwan.
In Jainism also a procedure is prevalent for service to Bhagwan. It is in two forms namely Samayik and Pratikraman. In both these forms, there is no request for worldly pleasure. It is in fact in the nature of self realization. Jain dharma is not based on one God. It proclaims that hymns in praise of gods and goddesses may provide momentary (or temporary) happiness but real peace and equanimity cannot be achieved. To gain self-realization it is essential that the prayer should be centred on the soul.
Attachment and hatred are the fundamental causes that disturb peace. Due to the presence of them in the soul, a living being cannot have peace of the soul even if he has immense worldly pleasure and he becomes king emperor (chakravart) or an angel. In order to gain peace of the soul, it is necessary to get liberated from the clutches of attachment and hatred and get stabilized in natural behavior.
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परिशिष्ट aap arappapepa
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