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यूं तो प्रत्येक जरूरतमंद दान का पात्र होता है । परन्तु पांच महाव्रतधारी श्रमण दान का सर्वश्रेष्ठ पात्र होता है। उसे दिया गया दान समष्टि के जीवों के हित में समर्पित होता है क्योंकि श्रमण प्रतिपल समष्टि के कल्याण हेतु साधनाशील रहता है।
Explanation: To make an offering and to feel very much pleased after making an offering is the greatest quality of a human being. A shravak makes a resolve for making an offering and considers it as implementation of a vow. Every moment he has in his mind that he may get the noble opportunity of making an offering. Whenever he sits for taking meals, he contemplates that some monk may arrive there and he may offer to him out of his food.
Generally every needy persons is worthy of receiving an offering. But the ascetic who has accepted five great vows of a Jain monk is the excellent one worthy of a receiving that offer. In the offering made to him lies the welfare of all living beings because the Jain monk remains engaged every moment in the ascetic practice leading to the welfare of the entire living organism.
विधि : तत्पश्चात् पद्मासन में बैठकर दोनों हाथ जोड़कर संलेखना सूत्र (देखें पृष्ठ 192) का उच्चारण करें। उसके बाद समुच्चय सूत्र पढ़ें।
Procedure: Thereafter one should sit in padmasan (the position wherein right foot is on left thigh and left foot on right thigh and with folded hands recite Samlekhana Sutra (see pp. 192 ). After that he should recite Samuchaya Sutra.
समुच्चय सूत्र
एम समकित पूर्वक बारह व्रत संलेखणा सहित एहने विषय जे कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अणाचार जाणतां अजाणतां, मन, वचन, कायाए करी सेव्यो होय सेवाव्यो होय, सेवतां प्रति अणुमोद्या होय, ते अनंता सिद्ध, केवलीनी साखें मिच्छा दुक्क
भावार्थ : सम्यक्त्व पूर्वक बारह व्रतों और संलेखना के विषय में यदि कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार एवं अनाचार के रूप में जानते हुए अथवा अनजाने में मन, वचन एवं काय से कोई दोष सेवन किया हो, दोष सेवन के लिए किसी को प्रेरित किया हो अथवा दोष सेवन करने वालों को अच्छा जाना हो तो अनन्त सिद्धों एवं केवलियों की साक्षी से मैं उन दोषों से पीछे हटता हूं। मेरा वह दुष्कृत निष्फल हो ।
Exposition: In case I have committed any fault in the form of intention, preparation, minor transgression or breaking the resolve concerning practice of
IVth Chp. : Pratikraman
श्रावक आवश्यक सूत्र
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