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पौषध दो प्रकार का है-(1) प्रतिपूर्ण पौषध एवं (2) देश पौषध। प्रतिपूर्ण पौषध में चारों प्रकार के आहार का त्याग किया जाता है। देश पौषध में जल का आगार रखा जाता है। उसे तिविहार पौषध कहते हैं। चारों आहारों का यथेच्छ उपयोग करते हुए भी पौषध किया जाता है। उसमें चारों आहारों के सिवाय शेष सभी नियमों का पालन करना होता है। पौषध के इस प्रारूप को दयाव्रत कहते हैं।
Explanation: PAUSHADH is the practice of ascetic life. By practicing it for 24 hours, the Shravak goes through the elementary practice of ascetic life.
Paushadh is of two types (1) Complete Paushadh (2) Partial paushadh. In complete paushadh one discards all the four types of articles of consumption. In partial paushadh he can take water. It is called tivihar paushadh (paushadh in which three types of articles of consumption are avoided.) Paushadh Vrat is also undertaken by keeping oneself free to consume all the four types of articles of consumption. But in that case all other rules are strictly followed. This form of paushadh is called aahar-paushadh (compassion to all the six types of living beings -Daya Vrat)
बारहवां व्रत : अतिथि-संविभाग ___ बारमूं अतिथिसंविभागवत समणे निग्गंथे फासुयं एसणिज्जेणं असणं-पाणं-खाइमसाइमेणं, वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुच्छणेणं, पाडिहारिय-पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं, ओसह-भेसज्जेणं पडिलाभेमाणे विहरामि; एहवि सद्दहणा परूपणा, फरसनाए करी शुद्ध, एहवा बारमा अतिथिसंविभाग-व्रत ना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा-ते आलोउं-सचित्तनिक्खेवणिया, सचित्त-पिहणिया, कालाइकम्मे, परोवएसे, मच्छरियाए, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। - भावार्थ : ‘अतिथि संविभाग' नामक बारहवें व्रत में मैं श्रमणों-निर्ग्रन्थों को प्रासुक और कल्पनीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम ऐसा चारों प्रकार का आहार तथा वस्त्र, पात्र, कंबल, पैर पोंछने का वस्त्र आदि अप्रातिहार्य (ऐसी वस्तुएं जिन्हें लेने के बाद साधु वापिस गृहस्थ को लौटाते नहीं हैं) एवं प्रातिहार्य (जिन वस्तुओं को उपयोग में लेने के बाद साधु गृहस्थ को लौटा देते हैं) चौकी, काष्ट का पटिया, शय्या (मकान), संस्तारक (तृण, पराल आदि), औषधि एवं भैषज्य से प्रतिलाभित करता हुआ विचरण करता हूं। ऐसी मेरी श्रद्धा और प्ररूपणा है। अवसर प्राप्त होने पर श्रमणों-निर्ग्रन्थों को उक्त वस्तुओं का दान देकर स्पर्शना करके शुद्ध होऊं।
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श्रावक आवश्यक सूत्र
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IVthChp.:Pratikraman amrap raasasaranspppypagpargospapepargoropapapgopppapayparposagarappams