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भावार्थ : दसवें देशावकाशिक व्रत में प्रातः सूर्योदय होने पर मैंने पूर्व आदि छहों दिशाओं में गमनागमन की जो मर्यादा निर्धारित की है उस मर्यादित क्षेत्र के उपरान्त अपनी इच्छा से काया से आगे जाकर पांच आस्रवों को सेवन करने का प्रत्याख्यान करता हूं। एक दिन एवं रात्र पर्यंत दो करण एवं तीन योग से - अर्थात् मन, वचन एवं काय से मर्यादित भूमि से बाहर जाकर पांच आस्रवों का न मैं स्वयं सेवन करूंगा एवं न ही किसी दूसरे को उसके लिए प्रेरित करूंगा।
गमनागमन के लिए जितनी भूमि की मैंने मर्यादा की है, उस भूमि में रहे हुए भोगोपभोग के साधनों की जो मर्यादा की है, उसके उपरान्त समस्त भोगोपभोग के पदार्थों का प्रत्याख्यान करता हूं। एक दिन और रात के लिए एक करण एवं तीन योगों से अर्थात् मन-वचन एवं काय से अमर्यादित पदार्थों का उपभोग नहीं करूंगा।
देशावकाशिक व्रत के पांच अतिचार हैं जो ज्ञेय तो हैं पर आचरणीय नहीं हैं। वे पांच अतिचार इस प्रकार हैं-( 1 ) मर्यादित भूमि से बाहर की वस्तु मंगवाई हो, (2) मर्यादित भूमि से बाहर वस्तु भिजवायी हो, (3) शब्द द्वारा मर्यादित भूमि से बाहर के लोगों को चेताया हो, (4) अपना रूप दिखाकर अपना कार्य सिद्ध कराया हो, एवं (5) किसी वस्तु को फैंककर मर्यादित भूमि से बाहर के लोगों को बुलाया हो, उक्त अतिचारों से यदि मेरा व्रत दूषित हुआ हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। दिवस संबंधी मेरा वह दोष मिथ्या हो।
Exposition: In Deshavakashik resolve, I have early in the morning at the time of sunrise, further reduced my likely movement in all the six directions namely east and others. I undertake not to go beyond that area intentionally and involve myself in acts that generate karmas. For twenty four hours (one day and one night) I shall not in three ways namely mentally, orally and physically and in two forms namely doing myself and inspiring others to do, I shall not go beyond the area determined in my resolve to commit any act of violence or inspire others for the same.
In the area determined for my movement, I shall use the articles of immediate consumption and of frequent use only to the extent already fixed in the resolve and withdraw myself from all other articles of enjoyment.
I shall not use or desire articles other than those included in my resolve mentally, orally and physically.
There are five likely deviations that may occur in practice of Deshavakashik resolve. They are as under: (1) to ask for any article which is in area not included
श्रावक आवश्यक सूत्र
IVth Chp. : Pratikraman
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