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________________ आराधना प्रतिदिन दो बार आवश्यक है। संभवत: इसीलिए इस आगम को 'आवश्यक' नाम प्रदान किया गया है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के शासनकाल का कोई भी श्रमण या श्रावक दिवस की किसी भी एक संध्या में यदि आवश्यक सूत्र की सविधि आराधना नहीं करता है तो वह अपने श्रमणत्व एवं श्रावकत्व से भ्रमित हो जाता है। प्रभात में सूर्योदय से पूर्व एवं शाम सूर्यास्त के पश्चात् प्रत्येक श्रमण एवं श्रावक के लिए इस सूत्र का सविधि स्वाध्याय अनिवार्य है। आवश्यक सूत्र को सविधि हृदयंगम किए बिना किसी भी मुमुक्षु को दीक्षा ( बड़ी दीक्षा) नहीं दी जा सकती है। इसी तथ्य से प्रस्तुत सूत्र के महात्म्य को समझा जा सकता है। प्रस्तुत आगम के प्रत्येक सूत्र और प्रत्येक पद पर श्रद्धेय गुरुदेव के ज्ञान - गांभीर्य की छाप है। गुरुदेव बोलते गए और मैं लिखता गया, बस इतना ही मेरा कार्य मानिये। यह कार्य करते हुए कई स्खलनाएं मुझसे हुई होंगी, विज्ञ पाठकजन मुझे क्षमा करेंगे ऐसा मुझे विश्वास है। चित्रांकन में श्री संजय सुराणा का सहयोग पूर्ववत् सराहनीय रहा है। इनके निर्देशन में तैयार कराए गए चित्र सदैव सुरुचिपूर्ण और बहुत ही भव्य रहे हैं। अंग्रेजी अनुवाद में आदरणीय श्री आर.के. जैन का एकलव्ययी समर्पण सचमुच श्रद्धा का विषय है। इनकी गुरु-भक्ति और आगम-निष्ठा सच में निष्ठा का विषय है। मेरे अभिन्न हृदय श्री विनोद शर्मा जी के सहकार को भी मैं नजरंदाज नहीं कर सकता। संपादन एवं प्रूफ संशोधन से लेकर प्रकाशन तक के प्रत्येक दायित्व को इन्होंने जिस अपनत्व से संपन्न किया है, उससे मेरा हृदय गद्गद है। और अंत में - सचित्र आगम संपादन- प्रकाशन के इस महत्कार्य से जुड़े सभी प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष सहयोगियों को हार्दिक साधुवाद प्रदान करते हुए अपनी लेखनी को विराम दे रहा हूं। - वरुण मुनि 'अमर शिष्य' // xxiv // kkkkkkkkkkkkkkkskskskskski
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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