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भावार्थ : सातवें व्रत में उपभोग-परिभोग की वस्तुओं का प्रत्याख्यान करते हुए आगे कही जाने वाली 26 वस्तुओं का परिमाण करे। (1) शरीर पोंछने के लिए तोलिए, अंगोछे आदि का परिमाण, (2) दांत साफ करने के लिए दांतुन-मंजन आदि का परिमाण, (3) खाने के उपयोग में आने वाले आम, अंगूर आदि तथा बाल धोने के काम आने वाले आंवले-रीठे आदि फलों का परिमाण, (4) तेल, इतर आदि का परिमाण, (5) शरीर-शुद्धि के लिए लगाए जाने वाले उबटन, पीठी आदि का परिमाण, (6) स्नान के लिए जल का परिमाण, (7) वस्त्रों का परिमाण, (8) चन्दन, क्रीम आदि विलेपन की वस्तुओं का परिमाण, (9) पुष्पों की जाति एवं मात्रा का परिमाण, (10) आभूषणों का परिमाण, (11) धूप, अगरबत्ती आदि का परिमाण, (12) पीने वाले पदार्थों का परिमाण, (13) खाद्य पदार्थों का परिमाण, (14) चावल आदि में पदार्थों का परिमाण, (15) विभिन्न दालों का परिमाण, (16) दूध, दही, घी, मक्खन, तेल, गुड़, शहद आदि का परिमाण, (17) घीया, तोरई आदि सब्जियों का परिमाण, (18) बादाम, पिस्ता, द्राक्षा आदि पदार्थों का परिमाण, (19) खाने के समय खाद्य वस्तुओं का परिमाण, (20) नदी, तालाब, कुएं आदि के जल का परिमाण, (21) लौंग, सुपारी आदि मुख को सुवासित करने वाले पदार्थों का परिमाण, (22) रथ, घोड़ा, बैल, गाड़ी, कार आदि परिवहन का परिमाण, (23) जते. चप्पल आदि का परिमाण. (24) खाट. पलंग.की. मेज आदि का परिमाण. (25) सचित्त वस्तुओं का परिमाण, (26) सचित्त-अचित्त सभी द्रव्यों का परिमाण। उपरोक्त 26 प्रकार की वस्तुओं का जितना परिमाण किया है, उस परिमाण से अधिक वस्तुओं के सेवन का जीवन भर के लिए एक करण एवं तीन योग से प्रत्याख्यान करता हूं। मर्यादा के उपरान्त उक्त पदार्थों के सेवन का मन, वचन एवं काय से त्याग करता हूं।
उपभोग-परिभोग नामक यह सातवां व्रत दो प्रकार का कहा गया है, जैसे कि-(1) भोजन * संबंधी, एवं (2) व्यापार (कर्मादान) संबंधी। भोजन संबंधी इस व्रत के पांच अतिचार श्रावक
के लिए जानने योग्य हैं पर आचरण करने योग्य नहीं हैं। पांच अतिचार इस प्रकार हैं-(1) जिन सचित्त द्रव्यों का त्याग अथवा परिमाण किया है उनका परिमाणातीत उपभोग करना, (2) सचित्त प्रतिबद्ध अर्थात् सजीव पदार्थों जैसे कि वृक्ष पर लगे हुए गोंद को वृक्ष से उतार कर खाना या वृक्ष से तोड़कर फल खाना, (3) ठीक प्रकार से जो पकी नहीं है अर्थात् ऐसी वस्तु का आहार करना जो कच्ची हो एवं पूरी तरह से अचित्त न हुई हो, (4) दुष्पक्व-पकने के बाद जिन वस्तुओं के वर्ण-गंध-रस आदि बिगड़ गए हों ऐसे पदार्थों का आहार करना, एवं, (5) तुच्छौषधि-जिस खाद्य पदार्थ में खाद्यांश अल्प एवं प्रक्षेपांश अधिक हो (गन्ना आदि) ऐसे पदार्थ का आहार करना। दिवस संबंधी उक्त अतिचारों से यदि मेरा सप्तम व्रत दूषित हुआ हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। तत्संबंधी मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। श्रावक आवश्यक सूत्र
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IVth Chp.: Pratikramane Po
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