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be cruel to others nor patiently tolerate cruelty towards him by others. So he is free to punish defaulters. He makes a resolve not to cause other living beings any violence intentionally or knowingly.
He is not held guilty of transgressing. this vow if out of ignorance any violence is caused, because in trade, in farming and in moving in vehicles, violence is caused to some living beings that cannot be avoided. In such a violence, there is no element in his heart of causing violence.
(The simple meaning of five atichars — faults has been narrated at pp. 209)
द्वितीय अणुव्रत : स्थूल मृषावाद विरमण
बीजूं अणुव्रत थूलाउ मोसावायाउ वेरमणं, कन्नालिए, गोवालिए, भोमालिए, थापणमोसा, मोटिको कूड़ी साख इत्यादि मोटकूं झूठ बोलवाना पच्चक्खाण, जावजीवाय दुविहं तिविहेणं, न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा कायसा । एहवा बीजा थूल मृषावाद - विरमण व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं, 1. सहसाभक्खाणे, 2. रहस्साभक्खाणे, 3. सदारमंतभेए, 4. मोसोवएसे, 5. कूडलेहकरणे, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ-द्वितीय अणुव्रत - मैं स्थूल मृषावाद से पीछे हटता हूं। कन्या (वर) संबंधी असत्य, आदि पशुओं संबंधी असत्य, भूमि संबंधी असत्य, स्थापना ( धरोहर ) संबंधी असत्य, एवं गवाही आदि से संबंधी असत्य बोलने का जीवन पर्यंत के लिए दो करण, तीन योग से त्याग करता हूं। मैं मन, वचन एवं काय से न स्वयं स्थूल झूठ बोलूंगा और न ही किसी अन्य को स्थूल झूठ बोलने की प्रेरणा दूंगा।
स्थूल मृषावाद विरमण नामक द्वितीय अणुव्रत के पांच अतिचार हैं। इन्हें जानना तो चाहिए पर इनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे पांच अतिचार इस प्रकार हैं- (1) बिना सोचे-विचारे बोलना अथवा यूं ही किसी पर सहसा दोषारोपण कर देना, (2) किसी की गुप्त बात को, रहस्य को लोगों के सामने प्रकट कर देना, (3) अपनी पत्नी की गोपनीय / मर्म युक्त बातों को प्रकट कर देना, (4) दूसरों को झूठ बोलने का उपदेश देना, एवं (5) झूठे लेख लिखना, उक्त पांच अतिचारों में से किसी भी अतिचार से मेरा द्वितीय अणुव्रत दूषित हुआ हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। मेरा वह दृष्कृत मिथ्या हो ।
Exposition: Second Anuvrat: I discard gross falsehood. I discard for the entire life telling lie about girl ( or boy), animals, land, things pawned, as a witness in three
श्रावक आवश्यक सूत्र
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IVth Chp. : Pratikraman