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आणी होय, 5. अणपूरी पारी होय, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : सामायिक नामक नौवें व्रत के विषय में यदि कोई अतिचार लगा हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। नौंवे व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं - (1-3) मन, वचन एवं काय - इन तीनों योगों को अशुभ मार्ग में प्रवृत्त किया हो, (4) समता भाव धारण न किया हो, एवं (5) समय पूरा होने से पहले ही सामायिक पार ली हो, उक्त अतिचारों से उत्पन्न दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हों।
Exposition: I criticize myself in case I may have committed any faults in the practice of ninth vow. Five likely faults in practice of ninth vow of Samayik are as follows:
(1-3) In case I may have engaged mentally, orally or physically in perverse
manner.
(4) In case I may not have remained in state of equanimity.
(5) In case I may have concluded the Samayik before the actual period had finished.
I feel sorry for all such faults. May my faults be condemned.
दशम व्रत विषयक अतिचार आलोचना
दसवां देशावगासी व्रत ने विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं, 1. नियमित भूमि की बाहर की वस्तु आणाइ होय, 2. मुकलाई होय, 3. शब्द करी जणायो होय, 4. रूप करी दिखलाई होय, 5. पुद्गल नाखिया आपण पउ जणावो होय, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।
भावार्थ : देशावकाशिक नामक दसवें व्रत के विषय में यदि कोई दोष लगा हो तो उसकी मैं आलोचना करता हूं। दसवें व्रत के पांच अतिचार इस प्रकार हैं - ( 1 ) मर्यादा की हुई भूमि से बाहर की वस्तु सेवक आदि से मंगवाई हो, (2) मर्यादित भूमि से बाहर वस्तु भिजवायी हो, (3) शब्द से संकेत किया हो, (4) हाव-भाव द्वारा अपने भाव प्रकट किए हों, एवं (5) कंकर आदि गिराकर वस्तु के बारे में बताया हो, उक्त पांच अतिचारों में से कोई अतिचार लगा हो तो उससे उत्पन्न दुष्कृत को मैं छोड़ता हूं।
Exposition: I criticize myself for any fault relating to practice of tenth vow by further reducing the limit (Dashavakashick Vow). Five likely faults are as follows:
Ist Chp. : Samayik
श्रावक आवश्यक सूत्र
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