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“देशावकाशिक व्रत” धारण की गई प्रतिज्ञाओं में विशेष उल्लास उत्पन्न करता है।
एक ही बार उपयोग में आने वाली वस्तुएं यथा - अन्न, फल आदि उपभोग कहलाती हैं। पुनः पुनः उपयोग में आने वाली वस्तुएं यथा - वस्त्र, पात्र आदि परिभोग कहलाती हैं।
Exposition: Deshavkashik is the tenth vow of a shrawak. In brief the purpose of this vow is that the practitioner again fixes a limit of the articles of his use reducing there number as compared to that which he had earlier fixed for his entire life. Fir instance a shravak has made a resolve that throughout life he shall take bath only with ten litre of water and not more than that this resolve is for entire life-span. Again for special resolve getting up in the morning he decides that he shall take bath only with five litre on that days and not more than that.
Deshavakashik vow generates special effort in earlier resolves.
The articles which can be consumed only once are called upabhog. They are food articles, fruit etc. The articles which can be used again and again are called paribhog. They are cloth, pot and the like.
प्रत्याख्यान पारणा सूत्र
उग्गए सूरे नमुक्कार सहियं पच्चक्खाणं कयं तं पच्चक्खाणं सम्मं कारणं, न फासियं, न पालियं, न तीरियं, न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, न आणाए, अणुपालियं न भवइ, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : सूर्योदय होने पर जो नमस्कार सहित. प्रत्याख्यान किया था, उस प्रत्याख्यान को यदि मैंने (मन-वचन) काया द्वारा सम्यक् रूप से स्पर्शित, पालित, तीरित (तीर्ण), कीर्तित, शोधित एवं आराधित न किया हो, तथा आज्ञा की अनुपालना न की हो, तो उससे उत्पन्न दुष्कृत मेरे लिए मिथ्या हो ।
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Exposition: At the time of sunrise, I had made a resolve with Namaskar. In case mentally, verbally or physically I have not properly practiced it, followed it, completed it, discriminately attended to it, properly relished it for any fault committed in its practice. I feel sorry for the same and pray that my faults may be condoned.
विवेचन : सभी प्रकार के प्रत्याख्यानों के पारणे के लिए प्रस्तुत सूत्र का पठन किया जाता है। ध्यान रहे कि 'नमुक्कार सहियं' पद के स्थान पर इष्ट प्रत्याख्यान का नाम लेना चाहिए।
1. “नमुक्कार सहियं" इस पद के स्थान पर जो भी प्रत्याख्यान ग्रहण किया हो, उसका उच्चारण करना चाहिए। // 190 //
Avashyak Sutra
षष्ठ अध्ययन : प्रत्याख्यान