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नहीं किया जाता। इसमें भोजन करते हुए साधक स्थिर मुद्रा में स्थित रहता है। केवल दाहिने हाथ एवं मुख से ही आहार-क्रिया की जाती है। शेष अंगोपांग स्थिर रखे जाते हैं। इसीलिए इस सूत्र में “आकुंचन-प्रसारण" नामक आगार नहीं रखा गया है।
In Ekasan, the practiser can stretch or withdraw him limb while taking food. But in Ekasthaan he cannot do so. He shall have to remain stable in his position while eating. He can take meals only with his right hand and the right side of his mouth. The other limits remain stationary. So the exception of stretching and withdrawing limbs is not mentioned in this.
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आयम्बिल प्रत्याख्यान सूत्र ___उग्गयसूरे आंबिलं पच्चक्खामि, तिविहपि आहार-असणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेणं, गिहत्थ-संसट्टेणं, उक्खित्तविवेगेणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स, लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससित्येण वा, असित्येण वा वोसिरामि।
भावार्थ : सूर्य उदय होने पर आयंबिल (आचाम्लतप) व्रत की आराधना करता हूं। उसके लिए त्रिविध आहार-अशन, खादिम और स्वादिम का प्रत्याख्यान करता हूं। अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ-संसृष्ट, उत्क्षिप्त-विवेक, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधि प्रत्ययाकार (ये आठ आगार आहार-संबंधी हैं।) एवं जल की अपेक्षा से लेपकृत, अलेपकृत, अच्छ, बहुलेप, ससिक्थ एवं असिक्थ-उक्त आगारों के अतिरिक्त समस्त आहार-पानी का परित्याग करता हूं।
विवेचन : आयम्बिल अथवा आचाम्ल व्रत में दिन में एक बार रूखा-सूखा, विगय रहित एवं नमक-मिर्च आदि समस्त रसों से रहित भोजन ग्रहण किया जाता है। अन्न की एक ही जाति से आयंबिल किया जाता है। आयंबिल की उत्कृष्ट आराधना के लिए विशिष्ट साधक रोटी को जल में भिगोकर उदरस्थ करता है।
प्रस्तुत सूत्र में अशन, खादिम और स्वादिम संबंधी आठ आगारों का अर्थ पूर्व सूत्रों में किया जा चुका है। इस सूत्र में जल संबंधी छह आगारों का भी वर्णन है। उनका स्वरूप इस प्रकार है
(1) लेपकृत-इमली, खजूर, द्राक्षा आदि का जल एवं दाल आदि का मांड जिसका लेप पात्र में शेष रह जाता है, ऐसा जल लेपकृत कहलाता है। आचाम्ल व्रती के लिए यह जल ग्राह्य
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आवश्यक सूत्र
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6thChp.:Pratyakhyan raparnagamanarsingareggappagaganagapps
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