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________________ ಣಿಣಗಳ ಗ Reladkeakedaalakarsakeeleakrasalkelksakskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskskrge पच्चक्खाणेणं आसवदाराई निरंभइ। पच्चक्खाणेणं इच्छानिरोहं जणयइ। इच्छानिरोह गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीइभूए विहरइ। -उत्त. २९/१३ ___गौतम! प्रत्याख्यान के द्वारा जीव आस्रव-द्वारों को रोकता है तथा इच्छाओं का निरोध करता है। इच्छानिरोध को उपलब्ध हुआ जीव समस्त द्रव्यों में तृष्णारहित होकर परम शीतिभूत होकर विचरता है। प्रत्याख्यान का फल है-आस्रव-द्वारों पर प्रतिबन्ध और इच्छाओं का निरोध। तत्पश्चात् इच्छा-निरोध का फल है-परमशांति। परमशांति ही प्राणिमात्र की आकांक्षा है। परन्तु यह परमशांति पदार्थ की आसक्ति से नहीं, पदार्थ की विरक्ति से प्रकट होती है। ___ आत्मा में अनन्त शान्ति के निधान दबे पड़े हैं। परन्तु अज्ञान के कारण आत्मा अपनी शक्ति को पहचान नहीं पाती है। छोटी-छोटी बाधाओं से वह त्रस्त हो उठती है। 'प्रत्याख्यान' के अभ्यास से आत्म-शक्ति पुनः वर्धमान बनने लगती है। प्रत्याख्यान भले ही एक नवकारसी अथवा पौरुषी का हो, उससे भी आत्मबल बढ़ने लगता है। आत्मबल की यही क्रमिक वृद्धि एक दिन साधक के भीतर संलेखना जैसी परम पात्रता को निर्मित कर देती है। प्रस्तुत अध्ययन के अन्तर्गत नवकारसी से प्रारंभ करके संलेखना सूत्र पर्यंत पाठों को ग्रहण किया गया है। अपने आत्मबल के अनुसार तथा अपने आत्मबल की निरन्तर वृद्धि हेतु साधक को समय को पहचानते हुए प्रत्याख्यानों का आचरण करना चाहिए। ಒಳ Raskesekseesicolesalessicsksksksksksksksistlessle skele sale skele stessdesksisatisticskskskskskskssakassicsakskaalsaksksksealeslesslesale skesakesatrakaskesakskskskelete आवश्यक सूत्र amra // 169 // 6th Chp. : Pratyakhyan apnapapagappeagepepepepperpeppeaganapapaprapannis p
SR No.002489
Book TitleAgam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2012
Total Pages358
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size15 MB
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